क्षमता विकसित करने के पर्याप्त अवसर मिलें
- 09-May-24 12:00 AM
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भारत डोगराभारत उन देशों में है जहां जनसंख्या के आयु वर्गीकरण के आधार पर युवा शक्ति का प्रगति में अधिक योगदान अपेक्षित है।इन संभावनाओं को भरपूर प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि युवाओं को इस प्रगति के अनुकूल अपनी क्षमता विकसित करने के पर्याप्त अवसर मिलें। इसके लिए शिक्षा और कौशल विकास के बेहतर अवसर तो जरूरी हैं ही, पर इसके साथ युवा सोच को ऐसी दिशा देना भी जरूरी है जो सामाजिक आर्थिक प्रगति के अनुकूल हो।यह इस समय और भी जरूरी हो जाता है जब युवाओं के सामने तरह-तरह के अनिश्चय की स्थितियां उपस्थित हैं। एक ओर बेरोजगारी की समस्या है और योग्यता तथा अपेक्षा के अनुकूल रोजगार न मिल पाने की समस्या है। दूसरी ओर, कुछ अन्य स्तर पर भी अनिश्चय और भटकाव है। आखिर, ऐसी क्या बात है कि पंजाब-हरियाणा जैसे अपेक्षाकृत समृद्ध क्षेत्रों में भी अनेक खाते-पीते परिवारों के युवक भी किसी तरह विदेश जाने से ही अपनी उम्मीदें जोड़ कर बैठ गए हैं। डंकीÓ मार्ग के अनेक खतरों को उठाना मंजूर है, इसके लिए परिवार को कर्जग्रस्त होना मंजूर है, पर विदेश जाना एक जिद बन गई है जबकि आसपास के परिवेश से जुड़कर एक बेहतर जीवन तलाशने का विकल्प स्वीकार्य नहीं है। इस तरह की स्थितियों से लगता है कि एक ओर शिक्षा और रोजगार की स्थिति से जुड़ी हुई समस्याएं हैं तो दूसरी ओर कुछ अन्य तरह का भटकाव और अनिश्चय भी है। इस कारण अनेक तनाव भी बढ़ सकते हैं और नशे जैसी तबाही की ओर झुकाव बढ़ सकता है। इन समस्याओं के बीच समाधान की एक बड़ी राह यह है कि कुछ बुनियादी मूल्यों और प्रतिबद्धताओं को युवाओं में प्रतिष्ठित किया जाए और उनकी सोच को इसके अनुकूल बताया जाए। यह सच है कि अधिकांश युवाओं के लिए रोजगार और आजीविका की सोच प्रमुख है, पर आगे चुनौती यह है कि इसके साथ एक बेहतर समाज बने और युवाओं को इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका में कैसे जोड़ा जा सकता है।युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए कि छात्र जीवन से ही वे इस बारे में अधिक सोचें कि उनकी प्रतिभाएं अधिक विकसित किस क्षेत्र में हो सकती हैं और किस तरह आसपास के समाज से जुड़ सकती हैं। इस तरह उनकी रचनात्मकता कहीं बेहतर ढंग से उभर सकेगी और समाज की भलाई से भी जुड़ सकेगी। इस पर अनेक युवा कहेंगे कि इस तरह की नौकरी न मिले (जिसमें अपनी रचनात्मक प्रतिभा और समाज की बेहतरी का मिलन हो) तो क्या करें। केवल नौकरी ही सब कुछ नहीं है, स्वरोजगार की भी अनेक संभावनाएं हैं, मित्रों-साथियों के साथ मिल कर भी कार्य करने की अनेक संभावनाएं हैं। जरूरत इस बात की है कि इस बारे में खूब सोच-विचार करें, जांच पड़ताल करें, अध्ययन करें और मित्रों, साथियों, अनुभवी व्यक्तियों, अभिभावकों से विमर्श करें कि अपनी प्रतिभा, क्षमता और सामाजिक भलाई के मिलन के आधार पर कैसे आगे बढ़ा जाए। यदि डाक्टर बनना है तो निर्धन लोगों की सेवा में अधिक जुड़ा जाए, यदि अध्यापक बनना है तो शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दिए जाएं, यदि पंचायत सदस्य बनना है तो पूरे गांव की भलाई से जुड़ा जाए, यदि किसान बनना है तो पर्यावरण की रक्षा वाली खेती की जाए। यह प्रक्रिया अपने आप इतनी रचनात्मक है कि इसमें गुजरते हुए ही युवाओं की क्षमता और समझ बहुत बढ़ती है और वे बेहतर इंसान भी बनने लगते हैं। इस सोच और विमर्श से गुजरते हुए ही युवाओं की अपने वर्तमान और भावी जीवन के बारे में कुछ ऐसे संकल्प बना लेने चाहिए जो उन्हें बेहतर जीवन और समाज की राह पर चलने में बहुत मदद करेंगे। पहली बात तो यह है कि सभी तरह के नशे से दूर रहने का संकल्प कर लिया जाए। अपने स्तर पर तो यह कर ही लिया जाए और हो सके तो नजदीकी मित्रों और साथियों को साथ लेकर भी यह संकल्प कर लिया जाए। शराब ड्रग्स, सिगरेट-बीड़ी, गुटका आदि सभी तरह के नशों को जीवन भर के लिए त्याग देना चाहिए। खान-पान, आचार, व्यवहार सभी में बेहतर स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना होगा क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य के बिना कोई भी बड़ा संकल्प प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयां आती रहती हैं। सुरक्षा का, किसी एक्सीडेंट या दुर्घटना से बचाव का अपने और परिवार के स्तर पर बड़ा ध्यान रखना चाहिए, इसके लिए जरूरी सावधानियां अपनानी चाहिए।युवाओं को अपने परिवार की भलाई से भरपूर जुडऩा चाहिए। आगे उनका विवाह होता है, तो अपने नये परिवार के प्रति पूरी निष्ठा जीवन भर रखनी चाहिए। युवाओं के लिए यह विशेष तौर पर जरूरी है कि महिलाओं का पूरा सम्मान करें और अपनी पत्नी (या किसी भी अन्य महिला के प्रति) कभी भी हिंसा या अत्याचार न करें। अच्छे पारिवारिक जीवन से एक बुनियाद तैयार होती है तो जीवन-पथ पर सदा सहायक होती है। अपने मित्रों, सहयोगियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना, विास और आपसी सहयोग के संबंध बनाए रखना भी लगभग इतना ही जरूरी है। तरह-तरह की फिजूलखर्ची से बचना चाहिए, केवल भेड़-चाल में आ कर अनाप-शनाप खर्च नहीं करना चाहिए और अपनी तथा परिवार की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के साथ कुछ बचत करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ईमानदारी और न्याय के लिए प्रतिबद्धता जीवन में आरंभ से बना लेनी चाहिए और किसी भी अपराध और जुए जैसी बुराइयों के नजदीक भी नहीं जाना चाहिए।सोशल मीडिया, मोबाइल फोन और कंप्यूटर की आधुनिक दुनिया में यह समझ बना लेना बहुत जरूरी है कि इनका सही उपयोग क्या है और अनुचित उपयोग क्या है। अनुचित उपयोग से यथासंभव दूर रहना चाहिए। अपने भीतर की हिंसक प्रवृत्तियों को, क्रोध और हिंसा को प्रयास कर दूर करना चाहिए तथा अमन-शांति तथा अहिंसा की राह पर जीवन भर चलना चाहिए। धर्म, जाति, लिंग, नस्ल, रंग आदि के आधार पर होने वाले किसी भी भेदभाव से दूर रहना चाहिए और सभी इंसानों की समानता, सभी धर्मो के सम्मान में गहरा विास रखना चाहिए। न्याय के लिए आवाज उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए, पर इसके लिए आपसी एकता से अपने को मजबूत भी बना लेना चाहिए।ये कुछ ऐसे जीवन-मूल्य हैं जिन्हें अपना लिया जाए, या जिन्हें अपनाने का निरंतरता से प्रयास किया जाए, तो एक ऐसे जीवन की बुनियाद तैयार हो जाती है, जिससे अपनी प्रतिभाओं और रचनात्मकता को समाज की भलाई से अधिकतम जोड़ा जा सकेगा। कल्पना कीजिए, यदि बढ़ती संख्या में युवक-युवतियां, छात्र-छात्राएं अपने भावी जीवन के बारे में इस तरह सोचने लगें तो कितना बड़ा बदलाव आ सकता है। युवा ही हमारे समाज की सबसे बड़ी संपत्ति है, देश और समाज का भविष्य उनके ही हाथों में है। अत: आज के तरह-तरह के भ्रम और भटकाव के बीच उनके लिए जीवन की सही विद्या प्राप्त करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है और इस महत्त्वपूर्ण सामाजिक जिम्मेदारी की हमें कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
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