गंभीर कदम उठाने होंगे

  • 01-May-24 12:00 AM

सुशील देवकई वजहों हमारा पर्यावरण और वातावरण दूषित हो रहा है, जिसके हम किस्तों में शिकार बन रहे हैं। मिलावटी खाद्य पदाथरे के कारण हम पहले से ही कई बीमारियों की जद में हैं, लगातार प्रदूषण के कारण हमारी सांसें उखड़ रही हैं तो आए दिन जलवायु परिवर्तन की वजहों से हमें अकल्पनीय विपत्तियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। उस पर घातक व मारक माइक्रो प्लास्टिक ने हमें चिंता में डाल दिया है। प्लास्टिक के कण जाने-अनजाने में हमारी आंखों से होते हुए शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों तक पहुंच रहे हैं, जो हमारे दिमाग पर भी असर डालने लगा है। दिमाग तक असर डालने का मतलब मानव जाति के लिए प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण खतरनाक संदेश दे रहे हैं। इसलिए हमें इस खतरे को देखते हुए पहले ही चेत जाना चाहिए।द यूनिर्वसटिी ऑफ न्यू मैक्सिको एंड हेल्थ साइंसेज से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह दावा किया है कि माइक्रो प्लास्टिक ने हमें गहरे तौर पर अपने शिकंजे में ले लिया है, इससे छुटकारा पाने के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे, वरना स्थिति बहुत भयावह होने वाली है। अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक प्रदूषण के महीन कण भोजन, पानी और हवा में घुल चुके हैं जो न केवल हमारे पाचन तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि हमारे आंतों से होते हुए शरीर के अन्य अहम अंगों जैसे गुर्दा, लीवर और मस्तिष्क तक पहुंच रहे हैं। दूसरा अध्ययन यह भी बताता है कि माइक्रो प्लास्टिक समुद्री जानवर और पौधों में भी पाए गए हैं। इतना ही नहीं, हम जिस बोतल बंद पानी को शान से शुद्धता की दुहाई देकर पीते हैं उनमें भी माइक्रो प्लास्टिक के अंश मिल रहे हैं।यह बेहद महीन कण होते हैं जिसे हम नंगी आंखों से नहीं देख सकते, जो अत्यंत जहरीले और केमिकल की शक्ल में होते हैं। आज प्लास्टिक किसी न किसी रूप में घर-घर में घुस चुका है जिससे छुटकारा पाना बेहद कठिन प्रतीत होता है। प्लास्टिक कप, थर्मोकोल, सजावट के समान, प्लास्टिक स्ट्रॉ, पैकेजिंग फिल्म, पीवीसी बैनर, गुब्बारे लगाने वाली प्लास्टिक की डांडिया, प्लास्टिक बैग, झंडा, टॉफी कैंडी के स्टिक, प्लास्टिक के बर्तन, शादी कार्ड, मिठाई के डब्बे, दवा की की बोतलें, बाल्टी आदि से लेकर सैकड़ों घरेलू वस्तुएं जो हमारे दैनिक जीवन व्यवहार में हैं, उनसे छुटकारा पाना बेहद कठिन प्रतीत होता है। हालांकि सरकार और कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की पहल से सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प समय-समय पर सुझाए गए हैं। कई योजनाओं पर काम भी चल रहे हैं। मगर इसके खतरनाक परिणाम को लोग अभी भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। मोटा-मोटी जूट बैग, प्लैटिनम, सिलिकॉन, स्टेनलेस स्टील, कांच, मिट्टी के बर्तन या चीनी मिट्टी के उत्पादों का इस्तेमाल करके हम इस खतरे से थोड़ा बच सकते हैं। प्लास्टिक पर्यावरण वन्य जीवन और आमजन के लिए सबसे बड़ा खतरा है।यह प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है और इससे निकलने वाले जहरीले रसायन भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं, जिससे घातक जानलेवा बीमारियां हो रही हैं। वैज्ञानिकों ने माइक्रो प्लास्टिक की मात्रा की पहचान करने के लिए चूहों पर अध्ययन किया जिसमें पाया कि चूहे तो सिर्फ चार सप्ताह के लिए माइक्रो प्लास्टिक के संपर्क में आए थे तब उनमें कई तरह की खतरनाक बदलाव देखे गए। शोधकर्ताओं ने इंसानी शरीर में जमा होते माइक्रो प्लास्टिक को लेकर गहरी चिंता जताई है क्योंकि धीरे-धीरे हमारे शरीर के अंगों से होते हुए अब यह इंसानी मस्तिष्क को प्रभावित करने लगा है।सरकार इस समस्या के निदान के लिए कार्य तो कर रही है, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई जो चिंताजनक है। गौरतलब है कि पूरे देश में एक जुलाई 2022 को सिंगल यूज प्लास्टिक के 20 आइटमों को प्रतिबंधित किया गया था। दिल्ली में इन आइटमों पर प्रतिबंध के बावजूद रोक अब तक प्रभावी नहीं दिखी है। अब दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी यानी डीपीसीसी ने इसके लिए एसओपी तैयार कर ली है। दिल्ली में लंबे वक्त से सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगी हुई है। बार-बार अभियान चलाए जाने के बावजूद ये रोक असरदार साबित नहीं हुई है। बड़ी बात यह है कि इनका उत्पादन और बिक्री बंद नहीं हुई है। दिन-ब-दिन प्लास्टिक हमारे ईको-सिस्टम को बर्बाद कर रहा है। इसका संयुक्त भार प्रतिवर्ष करीब 300 मिलियन टन है जो जलमागरे और समुद्रों को अवरुद्ध कर रहा है, सड़कों को जाम कर रहा है, वन्यजीवों को नुकसान पहुंचा रहा है और हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है।भविष्य की भयावह स्थिति से निपटने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को और चुस्त होने की आवश्यकता है। उन्हें जागरूकता के लिए कई स्तरों पर काम करना चाहिए। यदि स्कूली पाठ्यक्रम में बच्चों को शुरू से ही प्लास्टिक के दुर्गुणों के बारे में बताया जाए तो कुछ हद तक प्लास्टिक पर नियंत्रण की कोशिश सफल हो सकती है। स्कूलों के करिकुलर एक्टिविटीज में प्लास्टिक के दुष्परिणाम के बारे में बताया जाना चाहिए। हफ्ते या महीने में प्लास्टिक पर परिचर्चा जागरूकता अभियान और कार्यशाला आयोजित किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर इस संकट को हल्के में न लेते हुए सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए।




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