गुलामी के आठ सौ साल से उपजी सामूहिक हीन भावनाओं को लेकर चिंता?

  • 27-Sep-25 12:00 AM

अजय दीक्षितपुरानी बात है लेकिन इस संदर्भ में प्रासंगिक है। एक राजा बहुत क्रूर था और उसका मंत्री उससे भी बदमाश था। राजा का नया महल बन रहा था जबकि राजा एक दूसरे महल में रहता था। दोनों स्थानों के बीच एक नदी थी । मजदूर हजारों की संख्या में उस पुल से निकलकर राजा की बेगारी करने दूसरी ओर जाते थे। मंत्री ने राजा के कहने पर आदेश दिया कि लौटते समय सभी जनता , मजदूरों को जूते लगाए जाएं। राजा के आदेश का पालन हुआ और पांच सैनिक जूते लगाने तैनात किए। रोज शाम को सभी को घर लौट ने से पहले पांच,पांच जूते खाने पड़ते थे। सभी कुछ सहन हो रहा था।एक दिन राजा ने शराब पी ली और उस स्थान का पुल पर निरीक्षण किया। जनता सब सहन कर रही थी। फिर भी राजा ने एक डिब्बा रख वा दिया कि जनता के कोई सुझाव हो तो वह पर्ची पर लिख कर इस डिब्बे में डाल दें।यह जले पर नमक छिड़कने जैसा था ।कई दिन गुजर गए लेकिन कोई सुझाव नहीं आया तो हरामीज़ादे राजा ने जूते पांच के बजाय दस कर दिए तो एक परेशानी हुई कि मजदूर देर से घर पहुंचने लगे।इस पर एक मजदूर ने आंख बचाकर एक पर्ची डिब्बे में डाल दी।जब राजा को मालूम हुआ कि कोई सुझाव आया है तो उसने डिब्बा खुलवाया और पढ़ा तो उसमें लिखा था कि हजूर जूते लगाने वाले सैनिक बढ़वा दो ।शाम को घर पहुंचने में देर हो जाती है।यह सोच बन गई थी भारत वर्ष की जनता की गुलामी के आठ सौ साल में, हीन भावना उत्पन्न हो गई थी। 1192 से देश में विदेशी शासन ही रहा। पारस की खाड़ी से आए महमूद गजनी ने आक्रमण किया और इंद्रप्रस्थ के राजा पृथ्वी राज चौहान हो हराकर बंदी बना लिया। उसके दिल्ली सल्तनत, मुगल, ब्रिटिश ने राज्य किया ।1947 में ही आजाद हो सका था।कुल 800 साल हम गुलाम रहे ।भारत वर्ष लगभग आठ सौ साल पहले मुस्लिम सल्तनत,मुगल और ब्रिटिश का गुलाम रहा था। इस दौरान देश में एक सामूहिक हीन भावना उत्पन्न हुई और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ जाती रही।इस काल खंड में देश ने अनेक शासनों को झेला। आज भी यही आवाज कई लोगों में यह कह कर निकलती है कि हम इस पचड़े में नहीं पड़ेंगे चाहे कितना भी बड़ा मुद्दा हो लोग आज भी बचना चाहते हैं।इस देश के लोगों ने आजादी के राजनीतिक लोगों, अधिकारियों, आपातकाल, आतंकवाद, भाईभतीजाबाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, नौकरशाही,को झेला है। वह तो भला हो जवाहर लाल नेहरू का जिन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित कर दिया और जनता को गुप्त मतदान के माध्यम से सरकार बदलने का मौका मिला हुआ है नहीं तो पाकिस्तान में तीन बार संविधान बदल चुका है और सेना प्रमुख जब मर्जी हो तख्तापलट कर देते हैं और जनता तमाशबीन बन कर देखती रहती है।भारत में कभी क्रांति नहीं हो सकती है क्योंकि हमारी रगों में अजीब सी हीन भावना है। मुस्लिम देशों में सत्ता के लिए रक्तपात किया जाता है।ईरान, इराक, सीरिया लेबनान, लीबिया,उसके उदाहरण हैं।रूस में 1907 में क्रांति हो चुकी है। चीन में माओवाद था और अभी भी है , अफगानिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश,में भी हिंसक क्रांति हो चुकी है।इस के पीछे इन देशों का इतिहास है और वे 800 वर्ष गुलाम नहीं रहे। ब्रिटिश ने जहां जहां शासन किया वे बहुत ही निर्दयता से जनता से व्यवहार करते थे।भारत में उन्होंने खूब लूटपाट की और जनता का हर तरीके का शोषण किया।जो पीछे छूट गया उसे भूल कर हीन भावना से लोगो को निकलना चाहिए।800 वर्षों की गलमी ने भौतिक विकास, समाज विकास, बुरी तरह से प्रभावित किया था। यद्यपि ब्रिटिश ने भारत को कंगाल कर दिया।1931 में गोल मेज सम्मेलन में गांधीजी ने जॉर्ज पंचम से यही तो कहां था कि मेरे देश की जनता भूखी और कंगाल है और आप मुझसे उम्मीद कर रहे हैं कि में आपके सामने कोट पेंट पहन कर आने का काम करूं। लेकिन नेपाल की घटनाओं को सही नहीं ठहराया जा सकता यद्यपि नागरिक अगर अपनी बात दृढ़ता से रखेंगे तो सरकारें भी ठीक काम करेंगी। देश की केंद्रीय सरकार और राज्यों की सरकार भी इस हीन भावनाओं से जुड़ी रही हैं। जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सरकारों अधिक दृढ़ता का परिचय देना चाहिए था। जैसे 1962 के युद्ध में चीन ने भारत की 74000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया उसे भारत आज तक बापिस नहीं ले सका है। हां श्री मति इंदिरा गांधी ने 1971 का युद्ध जीतकर बांग्लादेश बनवा दिया।यह अपवाद है।इस प्रकार 70 वर्ष बाद कश्मीर से अनुच्छेद 370 भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार ने विलोपित की क्योंकि इस मुद्दे को 1950 से ही उठा रहा था। अटल बिहारी वाजपेई ने परमाणु हथियारों का परीक्षण भी अपवाद है। लेकिन 2014 से जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है उसने कड़े फैसले लेना शुरू किए हैं चाहे वह चकमा घुसपैठियों का मामला हो या राष्ट्रीय नागरिक कानून हो सटीक और सबल निर्णय लिया है।




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