चुनाव आयोग से फिर ठनी
- 28-Apr-24 12:00 AM
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उद्धव ठाकरे की चुनाव आयोग से फिर ठन गई है। उनके नेतृत्व वाले गुट को आवंटित चिह्न मशालÓ की थीम सांग में भवानीÓ का उल्लेख हुआ है।आयोग इसे हिन्दू धर्म की देवी का पर्याय मानते हुए बदलने को कहा है। चुनाव में धार्मिंक संज्ञाओं, प्रतीकों, नारों आदि के उल्लेखों की सिद्धांतत: मनाही है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। अत: पार्टयिों से अपेक्षा है कि वे किसी एक धर्म और उनके प्रतीकों के आधार पर प्रचार न करें।वोट न मांगें। इससे उस सर्वसाधारणता की भावनाओं की अवज्ञा हो जाती है, जिसका आदर संविधान का मूल अभिप्राय है। उद्धव ठाकरे कहते हैं कि भवानीÓ नाम महाराष्ट्र, जिसमें इसके सभी धर्मो-विासों के नागरिक रहते आए हैं, वह छत्रपति शिवाजी के बलिदानों की पावन कर्मभूमि है, जिन्होंने भवानीÓ का नाम लिया है। शिवाजी माने महाराष्ट्र। इन्हीं शिवाजी के नाम पर उनके पिता बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना, जो पिछले साल बंट गई थी, की बुनियाद रखी थी। वे इस शब्द को नहीं बदलेंगे।उद्धव का यह रवैया आयोग से रार मोल लेने जैसा लगता है। इसलिए भी कि आयोग और न्यायालय ने बाला साहेब के मताधिकार को छह साल तक के लिए निलंबित कर दिया था। तब उन्होंने चुनावी भाषण में हिन्दू वर्चस्व के आधार पर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की वकालत की थी। पर उद्धव का मामला इससे भिन्न है।उन्हें आयोग से शिकायत है कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कर्नाटक विधानसभा चुनाव एवं गृहमंत्री अमित शाह के मध्य प्रदेश चुनाव में क्रमश: बजरंगबली के नाम पर बटन दबाने एवं चुनाव बाद राम मंदिर के मुफ्त दर्शन के उल्लेखों पर आंखें मूंद लेता है। इस बाबत लिखे गए उनके शिकायती पत्र का जवाब तक नहीं देता है। क्यों?इसका जवाब दिए बगैर उद्धव के विरु द्ध कोई कार्रवाई क्या मुनासिब होगी? आयोग समथरे को दोषी नहीं मानता है तो वह समदर्शी कैसे हो सकता है? फिर चुनाव दर चुनाव में लग रहे जय.रामÓ के नारे को क्या कहा जाएगा? दरअसल, मशालÓ गीत के बोल और उसका संदेश शिकायत की एक बड़ी वजह है।इसमें तानाशाहीÓ को खत्म करने की बात कही जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि यह मूल शिवसेना की थीम सांग की तरह लोगों को उद्धव गुट की तरफ खींचेगा। जिन वगरे को यह गीत संबोधित है, उसके आधार की एकमात्र प्रवक्ता आज कोई और पार्टी हो गई है। नोटिस का यह भी एक कारण है-उद्धव को लगता है। इनके बावजूद उन्हें नोटिस का तर्कपूर्ण उत्तर देना चाहिए। आयोग को भी इस पर विचार करना चाहिए।
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