जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी

  • 04-May-24 12:00 AM

अमेरिका में बैठे कांग्रेस हितैषी सैम पित्रोदा (सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा) ने सुदूर भारत की उनींदे से चुनाव प्रचार में करंट पैदा कर दिया है। उन्होंने अमेरिकी विरासत-कर प्रणाली की सराहना करते हुए भारत में इसकी संभावना पर विचार करने को कहा है।इस एक मशविरा ने भाजपा और उसके नेता नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस पर हमले के लिए दोनों हाथों में मुद्दा दे दिया है-एक ब्रह्मास्त्र थमा दिया है। वे इसे पुरखों की गाढ़ी कमाई से खड़ी की गई संपत्ति-परिसंपत्ति पर पंजाÓ मारने की लुटेरी नीयत मान रहे हैं।उसका लूट प्लान जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भीÓ जारी रहने वाला है यानी माता-पिता के जीवित रहते कर लेंगे और उनके बाद वारिसों से भी। वे खुल्लमखुल्ला इशारा कर रहे हैं कि कांग्रेस उनकी संपत्ति छीन कर किसी को (मुसलमानों को?) दे देगी। धन-संपदा मनुष्य की एक स्थायी नैसर्गिक कामना है। इसे हथियाने की बात होगी तो लोग-बाग कांग्रेस से बिदकेंगे ही।पित्रोदा के सहसा सीन में आने के दो दिन पहले तक मोदी कांग्रेस के मैनिफेस्टो में संपत्ति के सर्वेक्षण पर समझा रहे थे कि कांग्रेस सत्ता में आई तो आपकी संपत्ति छीन कर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालेÓ और घुसपैठिएÓ को दे देगी-महिलाओं से उनके मंगलसूत्र तक छीन लेगी। जबकि कांग्रेस का एजेंडा एक दशक में बढ़ी आय-असमानता की वजहों की जांच का है। पर मैनिफेस्टो से मोदी के जबरदस्ती निकाले जिन ने लोगों को डराना शुरू कर दिया।तब भी मोदी इन हथियारों की मारकता शेष चुनाव तक बने रहने पर आस्त नहीं थे। वे कांग्रेस और उसके गठबंधन के दुष्प्रचार के आगे डिफेंसिव थे। जो कह रहे थे कि मोदी अबकी सत्ता में आए तो न आगे चुनाव होगा, न संविधान बचेगा और न आरक्षण रहेगा।Ó लेकिन पित्रोदा की गलत टाइमिंग ने मोदी का समय सही कर दिया। वे फ्रंट पर हैं और विपक्ष बैकफुट पर। हालांकि कांग्रेस ने सैम की राय को निजी बता कर पल्ला झाड़ लिया है। पर नुकसान की भरपाई मुश्किल है।अमेरिका में कुल विरासती संपत्ति के मूल्य का 55 फीसद हिस्सा सरकार ले लेती है। शेष 45 फीसद पर ही भावी पीढ़ी का हक होता है। यह विश्व के दर्जनों देश में लागू है। भारत में राजीव गांधी सरकार ने वित्तमंत्री वीपी सिंह के सुझाव पर इसे अनुत्पादक मानते हुए निरस्त कर दिया था। पर इस गए विचार ने भारतीय चुनाव में एक नया हलचल पैदा कर दिया है।




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment