डब्लूटीओ से ना-उम्मीदियां
- 29-Feb-24 12:00 AM
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पश्चिम और चीन के बीच संबंध उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि उनके बीच विश्व-व्यापी मुक्त व्यापार पर समझौता होने की संभावना न्यूनतम बनी हुई है। इस टकराव का ही परिणाम है कि डब्लूटीओ गतिरोध का शिकार हो गया है।विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) की 13वीं मंत्री स्तरीय बैठक अबू धाबी में बिना ज्यादा उम्मीद के माहौल में शुरू हुई है। दुनिया के मौजूदा रूझान के बीच यह मंच निष्प्रभावी अवस्था में पड़ा दिख रहा है। ऐसी संभावना नहीं है कि अबू धाबी बैठक में उन मूलभूत समस्याओं का निवारण होगा, जिसकी वजह से यह संगठन अपेक्षित भूमिका नहीं निभा पा रहा है।डब्लूटीओ के साथ सबसे बड़ी दिक्कत उसकी अपीलीय संस्था का निष्क्रिय अवस्था में पड़ा होना है। 2019 से विवाद निपटारे की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इस संस्था में जजों की नियुक्ति को अमेरिका ने रोक रखा है। तब डॉनल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जो मुक्त व्यापार की नीति के घोषित विरोधी थे। मगर जनवरी 2021 में राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन ने भी डब्लूटीओ के बारे में नीति बदलने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध को जारी रखा। बल्कि एक कदम और बढ़ते हुए वे अमेरिका में औद्योगिक नीति लागू करने में जुट गए।ये दोनों कदम सिरे से डब्लूटीओ के नियमों और भावना के खिलाफ हैं। उधर दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश चीन ने डब्लूटीओ के दायरे से बाहर रहते हुए अलग-अलग देशों और देश-समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की नीति अपना रखी है। वैसे, चूंकि डब्लूटीओ उसके लिए फायदेमंद साबित हुआ है, इसलिए वह इस मंच को सक्रिय करने में भी जुटा हुआ है। मगर पश्चिम और चीन के बीच संबंध उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि उनके बीच विश्व-व्यापी मुक्त व्यापार पर समझौता होने की संभावना न्यूनतम बनी हुई है।इस टकराव का ही परिणाम है कि डब्लूटीओ गतिरोध का शिकार हो गया है। 26 से 29 फरवरी तक चलने वाली 13वीं मंत्री स्तरीय वार्ता के एजेंडे में वैसे तो कई प्रमुख मुद्दे हैं। इनमें चीन की तरफ से नियमबद्ध निवेश के लिए पेश एक प्रस्ताव भी है। बताया जाता है कि जो देश इसका विरोध कर रहे हैं, उनमें भारत प्रमुख है। चूंकि इस संगठन में फैसले आम सहमति से होते हैं, इसलिए चीन के प्रस्ताव का पारित हो पाना मुश्किल है। ऐसी ही आशंका अन्य मुद्दों को लेकर भी है।
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