दिल्ली में उभरते विवाद लोकतंत्र के लिए चुनौती

  • 12-Aug-24 12:00 AM

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उपराज्यपाल को एमसीडी में दस एल्डरमेैन नामित करने के अधिकार को चुनौती दी गई थी।अदालत ने कहा वह (उपराज्यपाल) मंत्रीपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। उपराज्यपाल कार्यालय और दिल्ली सरकार के दरम्यान तनावपूर्ण संबंधों पर असर डालने वाले फैसले में पीठ ने कहा कि 1993 में संशोधित दिल्ली नगर निगम कानून उपराज्यपाल को निगम की विशेष जानकारी रखने वालों को नामित करने का विशेष अधिकार देता है।शक्ति संदर्भ में यह स्पष्ट है कि उपराज्यपाल को कानून के अनुसार काम करना होता है न कि मंत्रीपरिषद की सलाह के अनुसार। यह राज्यपाल का वैधानिक कर्त्तव्य है, न कि राज्य की कार्यकारी शक्ति। एमसीडी में ढाई सौ निर्वाचित और दस नामित सदस्य हैं।दिसम्बर, 2022 में नगर निगम चुनाव में आप ने 134 वार्ड जीत कर भाजपा के पंद्रह साल के शासन को खत्म कर दिया था। आप के वरिष्ठ नेता सांसद संजय सिंह ने इस फैसले पर नाराजगी व्यक्त की। सिंह ने कहा कि यह चुनी गई सरकार पर एलजी के अधिकारों को तवज्जो देने वाला फैसला है।उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय कहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री समेत कई वरिष्ठ नेता विभिन्न मामलों में इस वक्त जेल में हैं जिससे सरकार के काम-काज में पहले ही खासी दिक्कत आ रही है। दूसरे जब से दिल्ली की सत्ता आम आदमी पार्टी के हाथ आई है, तब से उसकी लगातार केंद्र और उपराज्यपाल से ठनी रहती है।दोनों कई बार पहले भी अदालत की शरण जा चुके हैं। यह कहना गलत नहीं है कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार को काम-काज की पूरी छूट होनी चाहिए। इसमें नियमों/कानून की अवहेलना कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती। चूंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं प्राप्त है, इसलिए लगातार विवाद उभरते रहते हैं जो लोकतंत्र के लिए चुनौती हैं।अधिकार क्षेत्र या विकास कार्यों को लेकर उठने वाले विवादों के निपटारे के लिए पारदर्शी नियम बनाए जाने की जरूरत है। सरकार को भी अपने फैसलों में एलजी के अधिकारों का अतिक्रमण करने से बचना सीखना होगा।दरअसल, जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है, तभी से केंद्र और उसके बीच जब-तब मसले और मामले और विवाद उभरते रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि दोनों तरफ परस्पर विवेकपूर्ण रवैया अपनाया जाए।




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