दूरगामी एजेंडे का हिस्सा
- 29-Jun-24 12:00 AM
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लोकसभा के सदस्यों से आवश्यक शिष्टता, शालीनता, मर्यादा, भाषाई संयम और व्यावहारिक विवेक की अपेक्षा करना तो लगभग संभव ही नहीं रह गया है। फिर भी उनके महत्त्वपूर्ण लोकतांत्रिक पद के अनुसार न्यूनतम शिष्टाचार की उम्मीद तो रहती ही है।लेकिन इस बार नवनिर्वाचित सांसदों ने शपथ लेते समय शपथ ग्रहण मंच को जिस तरह से अपने-अपने एजेंडे का माध्यम बनाया वह जितना हतप्रभ करने वाला था उतना ही दुखद भी था। भाजपा सांसद अतुल गर्ग ने शपथ लेने के बाद श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और नरेन्द्र मोदी जिंदाबादÓ के नारे लगाए। तो बरेली के भाजपा सांसद छत्रपाल सिंह गंगवार ने जय हिन्दू राष्ट्रवाद का नारा लगाकर धर्मनिरपेक्षवादी विपक्ष को सुई चुभाने का काम किया।इसी तरह अनेक नवनिर्वाचित सांसद एक के बाद एक अपने-अपने एजेंडे को सामने रखते हुए शपथ लेने के समय नारे लगाते देखे गए। लेकिन सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाला शपथ ग्रहण ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता असद्दीन ओवैसी का रहा। उन्होंने विशुद्ध इस्लामिक तरीके से अल्लाह के नाम पर शपथ ली और शपथ लेने के बाद जो नारे लगाए वे थे जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन। प्रत्यक्षत: लग सकता है कि उनके ये नारे सत्ता पक्ष को चिढ़ाने के लिए थे।इन नारों से सत्ता पक्ष विशेषकर राष्ट्रवादी भाजपा का कुनबा चिढ़ा भी, गुस्सा भी हुआ और आक्रामक भी। लेकिन इस पक्ष के पास ऐसा कोई कानूनी औजार नहीं था जिससे इस तरह की शपथ लेने वाले, हर समय इस्लाम और मुसलमान की दुहाई देने वाले इस सांसद ओवैसी को दंडित जैसा कुछ किया जा सके।वस्तुत: ओवैसी जैसे मुस्लिम नेता ऐसी बातें भ्रमवश, चूकवश या सिर्फ उकसावे के लिए नहीं करते। इस तरह की चीजें उनके दूरगामी एजेंडे का हिस्सा होती हैं जिसमें इस्लामी वर्चस्व, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं और इनके नाम पर मिली अभिव्यक्ति की आजादी इनके मुख्य एजेंडे के लिए सिर्फ कवच मात्र होते हैं।इसलिए ओवैसी के नारों के निहितार्थ से केवल भाजपा, आरएसएस कुनबे को कम, बल्कि कथित धर्मनिरपेक्षतावादियों को ज्यादा चिंतित होना चाहिए और उन्हें इस तरह की स्थितियों को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि इनमें भविष्य की जिन टकराहटों की आहट छिपी हुई है, वह इस देश में सांप्रदायिक सद्भाव के स्वप्न को कभी पूरा नहीं होने देगी।
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