देश पहले राजनैतिक पार्टी बाद

  • 09-Aug-24 12:00 AM

अजय दीक्षित पिछले दिनों देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी ने नारा दिया है कि अब चुनाव हो चुके हैं । जनता ने अपना अभिमत दे दिया है । अब अगले पांच साल सभी मिलकर देश की सोचें । अब यह सिद्धांत सभी दृष्टियों से श्रेष्ठतम है । परन्तु इस नीति पर अमल करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सत्ताधारी पार्टी की होती है ।पिछले दिन आयोजित नीति आयोग की बैठक का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने बहिष्कार किया, यह कहकर कि वे जब बोल रही थीं तो उनका माइक बंद कर दिया गया । इसके जवाब में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ममता बैनर्जी के अनुरोध पर उन्हें लंच से पहले बोलने का मौका दिया गया । उन्हें पांच मिनट का समय दिया गया था । ममता बैनर्जी का कहना है कि भाजपा के मुख्यमंत्री 20 मिनट से भी ज्यादा बोले । अब प्रश्न उठना है कि निर्मला सीतारमण स्वयं एक पार्टिसिपेंट थीं, वे नीति आयोग की अधिकारी नहीं हैं । तो ममता बैनर्जी का जवाब नीति आयोग के अधिकारी को ही देना चाहिए था । पर जब सत्ताधारी पार्टी अपने को स्वयं-भू समझने लगे तो यही होता है । निर्मला सीतारमण वित्तमंत्री की हैसियत से वहां थीं । आयोग की यह बैठक मुख्यमंत्रियों से मंत्राणा के लिए थी । आयोगके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं, परन्तु इस मीटिंग में और भी अनेक केन्द्रीय मंत्री मौजूद थे । अब यदि उनके मंत्रालय पर बुलाया गया था तो नेता विपक्ष को भी बुलाया जा सकता है । नवजीवन प्रेस ने कांग्रेस के बारे में गांधीजी के विचारों पर एक पुस्तिका छापी है । एक वक्तव्य में गांधी जी पूछते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष तो तीसरे दर्जे में सफर करते हैं, खद्दर पहनते हैं, परन्तु कांग्रेसी मंत्री प्रथम श्रेणी में सफर करते हैं और विलायती वस्त्र पहनते हैं । गांधी जी के अनुसार पार्टी का अध्यक्ष प्रधानमंत्री से बड़ा होता है । अब भाजपा के 3-4 पूर्व अध्यक्ष मोदी जी की कैबिनेट में मंत्री हैं । स्वयं मीटिंगों में नड्डा जी पुष्प गुच्छ देकर मोदी जी का स्वागत करते हैं । वे उन पुष्प गुच्छ को पीछे खड़े अपने सुरक्षा कर्मी को दे देते हैं जो गुच्छा अंतत: कूड़ेदान में जाता है । विदेशों में लोग सामान्य भेंट पर भी पुष्प गुच्छ देते हैं । भारत यदि यहां पुष्प गुच्छ देने की प्रथा को बंद करके इन फूलों को निर्यात करे तो फूलों की उपयोगिता भी बनी रहेगी और फॉरेन एक्सचेंज भी मिल जायेगा ।देश बड़ा के सन्दर्भ में अनेक विद्वान कहते हैं कि प्रोटर्म स्पीकर बनाते समय सामान्य नियम का पालन नहीं किया गया । एक कांग्रेसी लोकसभा के सांसद आठवीं बार चुनकर आये थे । परन्तु भाजपा सरकार ने सात बार के एक भाजपा सांसद को प्रोटर्म स्पीकर बनाया । अब प्रोटर्म स्पीकर को कोई अधिकार नहीं है । वह केवल सदस्यों को शपथ दिलाता है । तो नियम की अवहेलना से सत्ताधारी पार्टी को क्या मिला? देश बड़ा या पार्टी ।बहुत से चिंतक आज देश में पार्टी स्तर पर हो रहे विभाजन को लेकर चिंतित हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गौरव बल्लभ पहले कांग्रेसी थे । अब उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली । पिछले दिनों प्रधनमंत्री ने देश के चोटी के अर्थशास्त्रियों से मंत्रणा की थी । उसमें गौरव बल्लभ भी उपस्थित थे । यदि वे चोटी के अर्थशास्त्री हैं तो फिर जब वे कांग्रेस में थे, तब क्यों नहीं उन्हें मंत्रणा के लिए बुलाया जाता था? देश में चोटी के अर्थशास्त्री हजारों में नहीं तो सैकड़ों में तो होंगे ही । अच्छा हो पार्टी लाइन से हटकर उन्हें बुलाने की प्रथा शुरू की जाये ।यह तो सिद्धांत अच्छा है कि अब चुने हुए सांसद देश की सोचें । अपनी पार्टी की नहीं । परन्तु इसमें सबसे ज्यादा पहल सत्ताधारी पार्टी को करनी होगी ।मोदी जी व्यक्तिगत राग द्वेष से परे हैं । उम्मीद है कि उनकी संरक्षता में अब 2047 के बारे में सोचा जायेगा, जब देश स्वतंत्रता का सौ वॉं दिवस मनायेगा ।




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