दो यात्राओं का फर्क
- 17-Jan-24 12:00 AM
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नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान तीन हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस की करारी हार हुई। संभवत: तब कांग्रेस को फिर से यात्रा की याद आई। यही कारण है कि मणिपुर से शुरू हुई भारत जोड़ो न्याय यात्रा का पूरा संदर्भ बदला हुआ है।राहुल गांधी ने जब सितंबर 2022 में कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी, तो उसे दलगत तकाजों से ऊपर बताया गया था। देश के एक बड़े जनमत ने भी उसे देश में फैली नफरत और विभाजन की भावना के बीच मरहम लगाने की एक गंभीर कोशिश के रूप में देखा। तब राहुल गांधी ने मोहब्बत की दुकान की उपमा से उस यात्रा को बड़ा संदर्भ देने की कोशिश की थी। 31 जनवरी 2023 को जब वह श्रीनगर में यात्रा समाप्त हुई, तो वहां गिरती बर्फ के बीच दिए गए राहुल गांधी के भाषण लोगों के मन को छुआ। तब लोगों ने समझा था कि एक राजनेता देश में बड़ा पैगाम फैलाने के अभियान में निकला है। लेकिन यात्रा की समाप्ति के बाद जल्द ही ये प्रभाव मद्धम पडऩे लगा। लोगों को राहुल गांधी को अभी मेकेनिक और किसान, तो कभी कुली बनते और यहां तक कि पहलवान की ऐक्टिंग करते देखने का कौतुक प्राप्त हुआ।इस बीच कांग्रेस को कर्नाटक में जीत मिली और उसके बाद राहुल गांधी चुनावी तकाजों में सिमट गए। इस बीच जातीय जनगणना को उन्होंने अपना सेंट्रल थीम बनाया। इस दौरान उनकी जुबान पर 1990 के दशक में प्रचलित हुए मंडलवादी मुहावरे छाये रहे। लेकिन नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान तीन हिंदी भाषी प्रदेशों में यह रणनीति मुंह के बल गिरी। संभवत: तब कांग्रेस को फिर से यात्रा की याद आई। चूंकि इस बीच सामाजिक न्याय पार्टी का एजेंडा बन चुका था, तो इसका नाम बदलकर भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर दिया गया। इससे इस बार मणिपुर से शुरू हुई 67 दिन की यात्रा का पूरा संदर्भ बदल गया है। शुरुआत में यह यात्रा ये संदेश देने में विफल रही है कि यह दलगत तकाजों से ऊपर है। इसलिए कांग्रेस से बाहर के हलकों में यह पहले जैसा आकर्षण पैदा नहीं कर पाई है। पिछली यात्रा में अनेक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता और गणमान्य लोग शामिल हुए थे, जो अतीत में कांग्रेस की नीतियों से असहमत रहे हैं। उससे यात्रा में चार चांद लगे। यह देखने की बात होगी कि क्या इस बार भी ऐसा हो पाता है।
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