पर ट्रंप को क्या नोबेल तमंगा मिलेगा?

  • 11-Oct-25 12:00 AM

श्रुति व्यासडोनाल्ड ट्रंप के लिए शांति का अर्थ कभी युद्ध समाप्त करना नहीं बल्कि हेडलाइन जीतना का रहा है। और उसके बाद फिर नोबेल पुरस्कार। इस कार्यकाल की शुरुआत से ही ट्रंप की निगाह ओस्लो पर रही है। राष्ट्रपति पद बस मंच था; तमगा था लक्ष्य।इसलिए वे जब दोबारा ओवल ऑफि़स लौटे, तो वे एक जलती हुई दुनिया में भी सहज दिखे। आखऱि, युद्ध तो ऐसे शख़्स के लिए सबसे सुंदर पृष्ठभूमि है जो खुद को शांति निर्माता कहता है। उनकी विदेश नीति की शैली — अगर इसे नीति कहा जा सके — प्रदर्शन और दबाव का मिश्रण रही है। संघर्ष को बढऩे दो, टैरिफ़ की धमकी दो, उसे डील कहो और फिर ट्रुथ सोशल पर सबसे पहले शांति की घोषणा कर दो।कई बार यह तरीका काम कर गया — दक्षिण एशिया, अफ्ऱीका और पूर्वी एशिया जैसे छोटे संघर्षों में, जहाँ ट्रंप की एक कॉल, एक व्यापारिक धमकी और टफ लव का नाटक युद्धविराम बना गया।लेकिन यूक्रेन–रूस और इजऱाइल–ग़ाज़ा की लड़ाइयाँ अलग निकलीं — जि़द्दी, प्रतीकात्मक और चुनावी कैलेंडर में असुविधाजनक।फिर भी, ग़ाज़ा मोर्चे पर कुछ बदला है। बुधवार दोपहर जब ट्रंप एंटी-एंटिफ़ा राउंडटेबल में बोल रहे थे, तो विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने उन्हें एक नोट थमाया: बहुत नज़दीक हैं। आपको जल्द पोस्ट मंज़ूर करनी होगी ताकि सबसे पहले आप ही डील की घोषणा कर सकें। कुछ ही मिनटों बाद ट्रंप ने वैसा ही किया — अपने अंदाज़ में, अतिशयोक्ति के साथ।उन्होंने लिखा: सभी बंधक बहुत जल्द रिहा किए जाएंगे और इजऱाइल अपने सैनिकों को तय रेखा तक वापस बुलाएगा — एक मज़बूत, टिकाऊ और सदा-स्थायी शांति की दिशा में पहला क़दम। सभी पक्षों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार होगा!पूरी तरह बड़े अक्षरों में। पूरी तरह ट्रंप। पूरी तरह तमाशा।व्हाइट हाउस ने कुछ घंटों के भीतर ट्रंप की तस्वीर ट्वीट की — कैप्शन था ञ्जद्धद्ग क्कद्गड्डष्द्ग क्कह्म्द्गह्यद्बस्रद्गठ्ठह्ल. घोषणा भी उसी हफ़्ते आई जब नोबेल पुरस्कार सप्ताह चल रहा था। संयोग इतना परिपूर्ण कि वॉशिंगटन की पीआर मशीन रुक ही न सके। पर दिखावे से परे, ट्रंप के मीडिया प्रचार और उनके वफादार चैनलों की तालियाँ ओस्लो में असर नहीं छोड़ पाईं। विशेषज्ञों का भी यही मत है — नोबेल कमिटी तमाशे पसंद करती है, पर यह वाला नहीं। कम से कम इस साल तो नहीं।जहाँ तक युद्धविराम की बात है, यह कहानी कुछ जानी-पहचानी लगती है। जनवरी में भी एक जल्दबाज़ी में हुआ युद्धविराम बंधकों की अदला-बदली पर टूट गया था। मगर इस बार तैयारी ज़्यादा सुनियोजित दिखती है — कम अफऱा-तफऱी, ज़्यादा चमक-दमक। हमास ने बयान दिया है कि ट्रंप सुनिश्चित करें कि इजऱाइली शासन पूरी तरह समझौते का पालन करे — औपचारिक शब्दों के नीचे झाँकता अविश्वास साफ़ दिखा।उनका बयान स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय की माँग दोहराता है — ऐसे शब्द जो इजऱाइल के दक्षिणपंथ को अस्थिर करते हैं और वॉशिंगटन में लगभग अनसुने रह जाते हैं। इजऱाइल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपने घरेलू विद्रोह से जूझ रहे हैं। उन्होंने वादा किया है कि हम अपने सभी प्रिय बंधकों को वापस लाएँगे, लेकिन उनके अति-दक्षिणपंथी मंत्री — बेत्सलेल स्मोट्रिच और इतामार बेन-गवीर — धमकी दे चुके हैं कि अगर उन्होंने युद्धविराम मंज़ूर किया तो सरकार गिरा देंगे।ट्रंप की प्रतिक्रिया, ्र&द्बशह्य के अनुसार, शुद्ध ट्रंप थी: मुझे समझ नहीं आता तुम हमेशा इतने नकारात्मक क्यों रहते हो। यह जीत है। इसे जीत की तरह लो।कूटनीति के रूप में क्रूर बल — यही ट्रंप सिद्धांत है, एक पंक्ति में।फिर भी, यह मानना होगा कि एक संकीर्ण खिड़की खुली है।जनता का ध्यान युद्ध पर उतना ही केंद्रित है जितना ओस्लो समझौतों (1993-95) के समय था। ईरान के क्षेत्रीय प्रॉक्सी कमजोर हुए हैं, खाड़ी देश ग़ाज़ा के पुनर्निर्माण को फंड देने को तैयार हैं — और सुरक्षा गारंटी पर भी बातचीत को, जो 1990 के दशक में अकल्पनीय थी।कागज़ पर माहौल दशकों में सबसे अनुकूल दिखता है। पर ज़मीन पर भावनाएँ अलग हैं। ओस्लो के तीस साल और 7 अक्टूबर के दो साल बाद, दोनों समाज — इजऱाइली और फि़लिस्तीनी — पहले से कहीं ज़्यादा निराश हैं।अधिकांश इजऱाइली अब दो-राष्ट्र समाधान पर विश्वास नहीं करते; केवल लगभग एक चौथाई करते हैं।फि़लिस्तीनियों में उग्रता गहरी है — आधे अब भी 7 अक्टूबर के हमलों को जायज़ ठहराते हैं और अधिकांश हमास की बर्बरता से इनकार करते हैं। शांति की पुरानी भाषा अब दो समाजों में खोखली लगती है जिन्होंने एक-दूसरे की मानवता पर ही विश्वास खो दिया है।अगर बंधक रिहा होते हैं, तो फि़लिस्तीनी देखेंगे कि क्या इजऱाइल सचमुच ग़ाज़ा में एक तकनीकी प्रशासन को शासन करने देगा। इजऱाइली देखेंगे कि क्या ग़ाज़ा स्वयं को संभाल सकता है।और दोनों देखेंगे ट्रंप को — कि क्या उनका डील ऑफ़ द सेंचुरी महज़ चुनावी नारा है या वास्तविक समझौता।पर अभी ट्रंप उत्साहित हैं — चमकती आँखों के साथ।ख़बर है कि वह सप्ताहांत में क्षेत्र की यात्रा पर निकलेंगे, हस्ताक्षर समारोह में खुद को निर्माता के रूप में प्रस्तुत करने। यह डील टिकेगी या नहीं, यह अब भरोसे से नहीं बल्कि ट्रंप की अपनी आत्म-नियंत्रण क्षमता पर निर्भर करेगा — क्या वह अपनी त्वरित प्रसिद्धि की लालसा को थाम पाते हैं या नहीं।एक बात तय है — कैमरों की चमक और तस्वीरों की चकाचौंध के बीच, वह पहले ही उस सुनहरे मेडल की कल्पना कर रहे होंगे, जिस पर अंकित होगा क्कद्गड्डष्द्ग, और जो अगले वर्ष उनके गले में लटक रहा होगा।वही तस्वीर जिसका पीछा वे हमेशा करते रहे — हमारे समय की शांति नहीं, अपनी ताली के लिए।क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप के लिए, शांति कोई सिद्धांत नहीं — बस एक और डील है।और इस बार, रोशनी ज़्यादा अच्छी है।




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment