पाकिस्तान में हिन्दुओं पर ईश निंदा कानून का खतरा
- 05-Aug-24 12:00 AM
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पाकिस्तान ब्यूरो आफ स्टेटिस्टिक(पीबीएस) ने पिछले दिनों आंकड़े जारी कर बताया कि पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी बढ़ गई है। इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में 2017 में हिन्दुओं की आबादी 35 लाख थी जो 2023 में बढ़कर 38 लाख तक पहुंच गई।समझना होगा कि पाकिस्तान के हिन्दू बाहुल्य रेगिस्तानी इलाकों में कभी सलीके से जनगणना होती ही नहीं है, फिर वहां सिखों को अलग से गिना जाता है। सरकार की आंकड़ों को अब पाकिस्तान में निर्वाचित हिन्दू नेता ही फर्जी बता रहे हैं। समझना होगा कि एक तो पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों के जबरन अपरहण और धर्म परिवर्तन पर कभी कड़ी कार्रवाई होती नहीं, दूसरा वहां सरकार भी नहीं चाहती कि अल्पसंख्यकों की वास्तविक संख्या दिखाई जाए। उमरकोट के आसपास सैकड़ा भर गांव हिन्दू बाहुल्य हैं, और वहां सड़क, पानी, स्कूल जैसी सुविधाएं हैं नहीं।पाकिस्तान के बड़े संगठनों, पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के चेयरमैन डॉ. रमेश कुमार वांकवानी और मुतहिदा राष्ट्रीय मूवमेंट की प्रांतीय असेंबली सदस्य डॉ. मंगला शर्मा इन आंकड़ों को झूठ बताते हुए दस्तावेज प्रस्तुत कर रहे हैं कि सरकारी रिकार्ड में 2017 में हिन्दुओं की आबादी 44 लाख 44 हज़ार 870 गिनी गई थी। असलियत में आज आबादी एक करोड़ से अधिक है। अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार और भेदभाव पर पर्दा डालने के लिए इस तरह के फर्जी आंकड़े पेश किए जा रहे हैं। पीबीसी के आंकड़े तो ईसाइयों की आबादी में सात लाख की बढ़ोतरी बता कर उनकी संख्या 33 लाख पहुंचने का दावा कर रहे हैं। वहां पारसी महज 2348 रह गए लेकिन सिखों की संख्या का खुलासा नहीं किया गया है।पाकिस्तान में 1951 में 1.60 फीसद हिन्दू आबादी थी। 1961 में 1.45 फीसद, 72 में 1.11, 1981 में 1. 85 और 2017 में 1.73 फीसद हिन्दू आबादी थी। इस साल यह आंकड़ा घट कर 1. 61 फीसद रह गया है। चूंकि बड़ी संख्या में हिंदुओं के पास राष्ट्रीय पहचान पत्र (एनआईसी) है ही नहीं, सो उनकी गणना होती नहीं वरना यह आंकड़ा एक करोड़ से अधिक होगा। देश में सबसे ज्यादा हिन्दू सिंध में, कुल आबादी का 8.73 फीसद हैं। पंजाब राज्य में 0.19, खैबर पख्तुन्बा में 0.02, बलोचिस्तान में 0.40 और इस्लामाबाद में 0.04 फीसद हिन्दू आबादी का सरकारी आंकड़ा है। राजस्थान से सटे थारपारकर जिले में सात लाख 14 हजार 698 हिन्दू रहते हैं, तो मीरपुरखास में पांच लाख के करीब, सग्घर में चार लाख 46 हजार हैं तो बदिन, हैदराबाद, टंडो मुहम्मद खान और रहीम यार खान जिलों में एक से डेढ़ लाख हिन्दू रहते हैं। यहां उमरकोट जिले की आबादी का 52.15 फीसद हिन्दू हैं और यहां के राजपूत शासक बड़े ताकतवर हैं। हिन्दू बाहुल्य इलाकों से भी कभी हिन्दू सांसद या विधायक चुने नहीं जाते क्योंकि इस आबादी के नाम ही वोटर लिस्ट में होते नहीं या उनके वोट और कोई डालता है। पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनते हैं लेकिन कट्टरपंथी जमात के विरोध के चलते ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। दो साल पहले वहां 18 साल से कम के लोगों के धर्म परिवर्तन पर पाबंदी का कानून आया लेकिन मुल्ला- मौलवियों के विरोध के चलते वापस ले लिया गया। वहां धर्म परिवर्तन को ाब अर्थात पुण्य का काम कहा जाता है और इस्लामिक कानून के तहत ऐसी पाबंदी धर्म विरोधी कह कर गवर्नर ने कानून रद्द कर दिया था।पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की बीते साल की रिपोर्ट बेशर्मी से स्वीकार करती है कि देश में हर साल अल्पसंख्यक समुदाय की कोई एक हजार लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाया जाता है और ये 12 से 25 साल उम्र की होती हैं। 2004 से 2018 के बीच अकेले सिंध प्रांत में 7430 हिन्दू लड़कियों के अपरहण के मामले दर्ज किए गए, कहने की जरूरत नहीं कि वहां बड़ी संख्या में मामले थाना पुलिस तक जाते ही नहीं हैं। चूंकि सिंध के बड़े जागीरदारों के यहां अधिकांश हिन्दू मजदुर हैं, और वह भी तीन-तीन पीढिय़ों से लगभग बंधुआ मजदुर की तरह, सो उनकी कोई आवाज नहीं होती। कराची शहर में हिन्दू आबादी डॉक्टर जैसे पेशे में सर्वाधिक है, तो सब्जी बेचने वाले भी अधिकांश हिन्दू हैं। पाकिस्तान का शिक्षा तंत्र सबसे जहरीला है, स्कूली किताबों में हिन्दुओं को खलनायक बताया जाता है और आजादी की लड़ाई में मुस्लिम लीग और कांग्रेस की भूमिका को हिन्दू-मुस्लिम टकराव, वहां की किताबों में देश के हिन्दुओं की वफादारी को भारत के साथ जोड़ा जाता है, वहां किसी भी किताब में किसी हिन्दू चरित्र की तारीफ की ही नहीं जाती। पाकिस्तान के संविधान के आर्टकिल 20-22 में धार्मिंक स्वतंत्रता का उल्लेख था लेकिन जुलाई, 1977 में जिया उल हक ने देश में माशर्ल लॉ घोषित किया और संविधान में बदलाव कर गैर-मुस्लिमों की धार्मिंक स्वतंत्रता पर कई पाबंदियां लगा दीं, पाकिस्तान में राष्ट्रपति मुस्लिम ही बन सकता है और सभी उच्च पदों पर मुस्लिम आयतों के साथ शपथ लेना अनिवार्य है। इसके कारण वहां हिन्दुओं को सदैव दोयम माना जाता है।पाकिस्तान में हिन्दुओं पर सबसे बड़ा खतरा वहां का ईश निंदा कानून है जिसकी आड़ में भीड़ हिंसा में किसी को भी मार देने पर कोई खास कार्यवाही नहीं होती। हिन्दू या सनातन धर्म का कम से कम तीन हजार साल पुराना अतीत सरहद पार है-मोईन जोद्रो या हड़प्पा के रूप में और हिंगलाज और कटासराज मंदिर सहित कई प्राचीन इमारतों के रूप में, दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान बनते समय मुहम्मद अली जिन्ना ने वहां धार्मिंक आजादी की बात की थी लेकिन अब पाकिस्तान जिन्ना के पाकिस्तान से जेहाद के पाकिस्तानÓ में तब्दील हो गया है और इसका सबसे बड़ा खमियाजा हिन्दू आबादी को उठा पड़ रहा है। जनगणना के त्रुटिपूर्ण आंकड़े एक तरफ धर्मातरण के पाप को ढंकने के काम आते हैं, तो दूसरी तरफ जिस आबादी का रिकार्ड नहीं उसके लिए मूलभूत सुविधाओं की चिंता करने की जरूरत नहीं रह जाती। भारत में नागरिकता कानून आने के बाद वहां से पलायन तेजी से हुआ है और शायद वहां की सरकार चाहती भी यही है लेकिन यह अनिवार्य है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान में हिन्दू धर्म और उससे जुड़े चिह्नों को सहेजने, हिन्दू आबादी को शैक्षिक और आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाए।
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