पूर्वोत्तर की चिंताओं पर केन्द्र को गौर करना चाहिए
- 15-Jan-25 12:00 AM
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केंद्र को पूर्वोत्तर की चिंताओं पर गौर करना चाहिए। उचित यह होगा कि चीन से इस मुद्दे पर सीधी बात की जाए। चीन भी नदी जल बंटवारे संबंधी अंतरराष्ट्रीय संधियों से बंधा हुआ है। उससे इस बारे में ठोस आश्वासन मांगा जाना चाहिए।चीन के ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने के एलान से पूर्वोत्तर भारत, और यहां तक कि बांग्लादेश में भी चिंता पैदा हुई है। आशंका है कि कभी हादसा होने से बांध टूटा, तो पूरा पूर्वोत्तर डूब जाएगा।साथ ही तनाव के हालात में चीन ब्रह्मपुत्र पानी भी रोक सकता है। ब्रह्मपुत्र नदी चीन में यारलुंग सांगपो नाम से जानी जाती है। अरुणाचल प्रदेश में इसे सियांग नाम से जाना जाता है।असम पहुंचने पर उसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है। ब्रह्मपुत्र की कुल लंबाई करीब 2,880 किलोमीटर है। इसका 1,625 किलोमीटर हिस्सा चीन के तिब्बत में है।भारत में 918 और बांग्लादेश में 337 किमी इलाके में ये नदी बहती है। पर्यावरणविदों ने ध्यान दिलाया है कि चीन की ओर से अतिरिक्त पानी छोडऩे की वजह से हाल के वर्षों में अरुणाचल में तीन बार भयावह बाढ़ आ चुकी है।इसके अलावा इलाके में पहले कई अन्य प्राकृतिक आपदाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2000 में यारलुंग सांगपो की सहायक नदी ईगोंग सांगपो में भूकंप के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ था।इससे अरुणाचल प्रदेश और असम में भयावह बाढ़ आई, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हुआ। ऐसी घटनाएं बाद में भी हुई हैं। इस कारण ताजा खबर आने के बाद से पूरे इलाके में चिंता गहराने की खबरें हैं।अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि चीन बीते कई वर्षो से अरुणाचल से सटे सीमावर्ती इलाकों में बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचे का निर्माण कर रहा है।उन्होंने इस मुद्दे पर बातचीत की जरूरत बताई। केंद्र सरकार को ऐसी चिंताओं पर तुरंत गौर करना चाहिए। अब चूंकि चीन से द्विपक्षीय वार्ता फिर शुरू हो चुकी है, इसलिए उचित यह होगा कि चीन से इस मुद्दे पर सीधी बात की जाए।चीन भी नदी जल बंटवारे संबंधी अंतरराष्ट्रीय संधियों से बंधा हुआ है। उससे इस बारे में ठोस आश्वासन मांगा जाना चाहिए।भारत सरकार के लिए उचित होगा कि वह अंतरराष्ट्रीय संधियों के उपयुक्त प्रावधानों का उल्लेख इस सिलसिले में करे। संभव हो, तो बांग्लादेश को भी शामिल कर त्रिपक्षीय वार्ता के लिए पहल की जानी चाहिए।
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