प्लास्टिक : टाइम बम से संभल कर
- 18-Nov-23 12:00 AM
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सुधीर कुमारफ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने प्लास्टिक प्रदूषण को टाइम बमÓ कहा है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने टिकाऊ भविष्य के लिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम से कम करने का आह्वान किया है। दरअसल, आज पूरी दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण का संकट गहराता जा रहा है।संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, 1950 में दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण का आकार 20 लाख टन था, जो 2017 में बढ़कर 35 करोड़ टन हो गया, जबकि अगले दो दशक में इसकी क्षमता बढ़कर दोगुनी होने का अनुमान जताया गया है। यह चिंताजनक है कि आज दुनिया सालाना चार अरब टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रही है। इसमें से एक तिहाई प्लास्टिक एकल उपयोग वाली होती है। आश्चर्य की बात है कि जिस प्लास्टिक का आविष्कार मानव जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया था, वही आज पृथ्वी के लिए आपदा तथा मनुष्यों, वन्य एवं जलीय जीवों, पक्षियों और वनस्पतियों के लिए काल बनता जा रहा है। चूंकि प्लास्टिक कभी नष्ट नहीं होता, इसलिए एक बार निर्माण हो जाने के बाद वह धरती पर किसी न किसी रूप में मौजूद ही रहता है। कम खर्चीला, टिकाऊ और लचीला होने के कारण प्लास्टिक दुनिया भर में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। मानव जीवन से जुड़े अधिकांश साधनों में प्लास्टिक अपनी गहरी पहुंच बना चुका है।प्लास्टिक के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसे अपघटित होने में तकरीबन पांच-छह शताब्दी तक का समय लग जाता है। एक बार उत्पादित प्लास्टिक धरती पर किसी न किसी रूप में विद्यमान ही रहता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की मानें, तो 1950 से 2017 के बीच उत्पादित नौ अरब टन प्लास्टिक में से लगभग सात अरब टन प्लास्टिक कचरे के रूप में परिणत हो गया। यूएस पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अनुसार, अमेरिका में उत्पादित और उपयोग में लाया गया प्लास्टिक का हर टुकड़ा आज तक पर्यावरण में मौजूद है। प्लास्टिक नदियों, मिट्टी और महासागरों में प्रवेश कर हमारी खाद्य श्रृंखला और अंतत: हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें धीमी मौत मार रहा है। जिस प्लास्टिक को इस्तेमाल के पश्चात हम अपने आस-पास फेंक देते हैं, वही मृदा की उर्वरता और जल-धारण क्षमता को कम करता है। मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक सूक्ष्म जीवों के विकास को भी बाधित कर खाद्यान्न उत्पादन को प्रभावित करता है।वहीं प्लास्टिक उत्पादित खाद्य पदाथरे को विषाक्त भी बनाता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल प्लास्टिक एंड देयर सस्टेनेबिलिटी : कॉल फार एक्शनÓ के मुताबिक, कृषि भूमि में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण समाए हुए हैं, जिसके कारण खाद्य सुरक्षा, जन स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए जोखिम उत्पन्न हो रहा है। प्लास्टिक में उपस्थित जहरीले रसायन मिट्टी और जल में घुल जाते हैं। प्लास्टिक नदियों या समुद्र में प्रवेश करता है तो जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर जलीय पारितंत्र के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, प्लास्टिक प्रदूषण से 800 से भी ज्यादा समुद्री व तटीय क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियां प्रभावित होती हैं क्योंकि उन्हें प्लास्टिक के सेवन, उसमें उलझ जाने और अन्य तरह के खतरों का सामना करना पड़ता है।संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में हर साल लगभग एक करोड़ दस लाख टन प्लास्टिक कूड़ा-कचरा समुद्रों में बहा दिया जाता है। इसे रोका न गया तो 2040 तक इसके तिगुने होने का अनुमान है। युनोमिया रिसर्च एंड कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र तल के प्रत्येक एक वर्ग किमी. में औसतन 70 किग्रा. प्लास्टिक की मौजूदगी है। भूमि और जल के अलावा वायु के जरिए यही प्लास्टिक माइक्रोप्लास्टिक (पांच मिमी. से छोटे अंश) के रूप में हमारे सन तंत्र तक पहुंच जाते हैं, और फेफड़ों की कार्यक्षमता को कमजोर करते हैं। प्लास्टिक के असंख्य टुकड़े पृथ्वी का औसत ताप भी बढ़ा रहे हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंंग पर रोक लगाने में कामयाबी नहीं मिल रही है।गौरतलब है कि भारत में पिछले वर्ष एक जुलाई से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक (सिंगल यूज प्लास्टिक) के उत्पादन, भंडारण, विक्रय और इस्तेमाल कानूनी रूप से प्रतिबंधित हैं, लेकिन इस दिशा में समाज कितना गंभीर है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। प्लास्टिक प्रदूषण ऐसी गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जिसे जागरूकता से ही खत्म किया जा सकता है।प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगानी इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि आज अगर हम यह कदम नहीं उठाएंगे तो भावी पीढिय़ों के लिए जीवन अत्यंत कष्टकर हो जाएगा। प्लास्टिक के खात्मे के लिए व्यवहार में बदलाव लाने की आवश्यकता है। एक जागरूक उपभोक्ता के तौर पर हम खरीददारी के निमित्त कपड़े का थैला ले जाने, घर पर प्लास्टिक की थैलियां कम से कम लाने, कम पैकेजिंग वाले सामानों को खरीदने पर जोर देकर और प्लास्टिक के विकल्पों को प्राथमिकता देकर प्लास्टिक प्रदूषण के विरुद्ध अपनी सहभागिता दर्ज करा सकते हैं। देश का हर परिवार अगर प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करने का संकल्प ले तो प्लास्टिक-मुक्त वि की स्थापना की दिशा में यह पहल मील का पत्थर साबित हो सकती है।
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