बस अच्छी फि़ल्में तो बनाई जाएं थिएटर तक आने तैयार हैं

  • 11-Nov-24 12:00 AM

पंकज दुबेतुम्बाड देखना एक ऐसा अनुभव है, जो आपको डराता भी है, सोचने पर मजबूर भी करता है, और सिनेमाई स्तर पर गहरे तक छू जाता है। इसमें छोटी से छोटी चीज़ का भी एक अर्थ है। फि़ल्म की सिनेमेटोग्राफी, सेट डिज़ाइन, और कलर पैलेट- सब आपस में एक गहरे संबंध में बंधे हुए हैं। बारिश, कीचड़ और अंधेरे का उपयोग फि़ल्म के माहौल को और गहराई देता है। यह ऐसा है, जो फिल्म को एक अलग ही स्तर पर ले जाता है। तुम्बाडÓ अपनी नैरेटिव की क्लासिकी के लिए भी हमेशा याद रखी जाएगी।हिंदी फि़ल्म उद्योग में 2024 में एक नई शुरुआत यह हुई है कि बहुत-सी अच्छी, सार्थक और लोकप्रिय फि़ल्मों को सिनेमाघरों में एक बार फिर से रिलीज़ किया जा रहा है। इस शृंखला में अब तक तेज़ाब (1988), मैंने प्यार किया (1989), ताल (1999), रहना है तेरे दिल में (2001), वीर ज़ारा (2004), रॉकस्टार (2011), गैंग्स ऑफ़ वासेपुर (2012) के साथ-साथ 2018 की एक दिलचस्प फि़ल्म तुम्बाडÓ को भी फिर से रिलीज़ किया गया है। इस ट्रेंड ने सिनेमाघरों में जाकर फि़ल्में देखने वाले दर्शकों में एक नया उत्साह भरा है।तुम्बाडÓ एक पीरियड हॉरर फि़ल्म है, जो राही अनिल बर्वे द्वारा निर्देशित है। फि़ल्म के लेखक हैं मितेश शाह, आदेश प्रसाद और आनंद गांधी। इस फि़ल्म में आनंद गांधी ने क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में भी काम किया है।तुम्बाडÓ की दोबारा रिलीज़ इसके दर्शकों के लिए सिनेमाघरों में एक बार फिर से एक अनोखा अनुभव लेकर आई है। इसने उन दर्शकों का भी ध्यान अपनी तरफ खींचा है, जिन्होंने पहले यह फि़ल्म मिस कर दी थी। तुम्बाड आज भी उतनी ही प्रभावशाली और जादुई लगती है, जितनी पहले थी।तुम्बाडÓ की कहानी महाराष्ट्र की एक प्राचीन लोककथा पर आधारित है। यह कहानी लालच, रहस्य और भय का ऐसा मेल है कि दर्शकों के मन में कई सवाल उठाती है और बुनियादी ह्यूमन इंस्टिंक्ट्स के इर्द-गिर्द सोचने पर मजबूर करती है। यह फि़ल्मकार का कौशल ही है कि वह दर्शकों को बख़ूबी हस्तरÓ के किरदारों का जीवंत साक्षी बना देता है। साथ ही वह तुम्बाड की रहस्यमयी दुनिया में डर के साथ-साथ कहानी की गहराई को भी बढ़ाता है।तुम्बाडÓ की कहानी धरती माता के पुत्र हस्तर देवता पर आधारित है। वास्तविक जीवन में भगवान हस्तर के बारे में कोई भी ग्रंथ या लोककथा ढूंढ पाना मुश्किल है। फिल्म में हस्तर के बारे में बताया गया है कि वह उस देवी का सबसे प्रिय पुत्र है, जिसने सभी देवी देवताओं को जन्म दिया। फि़ल्म में हस्तर को एक पौराणिक देवता के रूप में दिखाया गया है, जो धन और अनाज का देवता है। फि़ल्म की कहानी के अनुसार, हस्तर एक लालची और स्वार्थी देवता था, जिसने अपने हिस्से से हमेशा ज़्यादा की चाह रखी। उसने देवी के खज़़ाने से सारा सोना ले लिया और फिर सारा अनाज भी लेना चाहा लेकिन, दूसरे देवताओं ने उसे अनाज नहीं लेने दिया। उस पर हमला कर दिया। बाद में उसे अनाज से वंचित कर दिया गया। इसके अलावा उसे धार्मिक ग्रंथों से गायब कर दिया गया और पूरी दुनिया उसके बारे में भूल गई। फिल्म के अनुसार, हस्तर अभी भी अपनी मां की कोख में कैद है।हस्तर के बारे में कहा गया कि उसका नाम नहीं लेना चाहिए, उसका नाम लेने से विनाश हो सकता है। वहीं, हस्तरÓ का सिर किसी ऑक्टोपस जैसा था, पंख किसी चमगादड़ जैसे थे और आंखें सुनहरी थीं। हस्तरÓ हमेशा एक पीले रंग के कपड़े से ढका रहता था।तुम्बाडÓ देखना एक ऐसा अनुभव है, जो आपको डराता भी है, सोचने पर मजबूर भी करता है, और सिनेमाई स्तर पर गहरे तक छू जाता है। इसमें छोटी से छोटी चीज़ का भी एक अर्थ है। फि़ल्म की सिनेमेटोग्राफी, सेट डिज़ाइन, और कलर पैलेट- सब आपस में एक गहरे संबंध में बंधे हुए हैं। बारिश, कीचड़ और अंधेरे का उपयोग फि़ल्म के माहौल को और गहराई देता है। यह ऐसा है, जो फिल्म को एक अलग ही स्तर पर ले जाता है। तुम्बाडÓ अपनी नैरेटिव की क्लासिकी के लिए भी हमेशा याद रखी जाएगी।फि़ल्म की कहानी एक क्लासिकल तरीके से आगे बढ़ती है, जिसमें सार्वभौमिकता का अहसास है। राही अनिल बर्वे का निर्देशन अद्भुत है। इस तरह की जटिल कहानी को सरलता से और प्रभावशाली ढंग से पर्दे पर लाना आसान काम नहीं है। सीन-दर-सीन वे दर्शकों को कहानी के साथ बांधे रखते हैं, और हर दृश्य में डर और रोमांच का एहसास कराते हैं।अगर हम इस फि़ल्म में कलाकारों की परफॉरमेंस की बात करें तो इसमें सभी किरदार है यादगार हैं। सोहम शाह ने विनायक का किरदार बड़ी गहराई से निभाया है। विनायक का लालच और उसकी आंखों में दिखने वाला जुनून दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। इसके अलावा बाकी कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है। हर किरदार का अभिनय इतना प्रभावशाली है कि वो कहानी में जीवंत लगते हैं।तुम्बाडÓ का म्यूजि़क और साउंड डिज़ाइन फिल्म का धड़कता हुआ दिल है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर और साउंड डिज़ाइन इतना प्रभावशाली है कि इस स्पेस में बनने वाली कई फिल्मों के लिए बख़ूबी रिफरेन्स के काम आ सकती है। फि़ल्म में अजय-अतुल का शानदार म्यूजिक कहानी को और मज़बूत बनाता है और हर सीन को बेहद इंटेंस और डरावना बनाता है। एक-एक साउंड इफेक्ट में इतनी बारीकी है कि यह दर्शकों को कहानी के भीतर खींच लेता है।फि़ल्म में गाना बेशक एक ही है लेकिन वो कहानी को और गहराई देता है। इस इकलौते गीत के बेहद सार्थक गीतकार हैं राज शेखर। तुम्बाडÓ में म्यूजि़क का उद्देश्य मनोरंजन से अधिक कहानी के मूड को बढ़ाना है।अच्छी फि़ल्मों को फिर से थिएटर में रिलीज़ करने के ट्रेंड को दर्शक खुले दिल से अपना रहे हैं। तुम्बाडÓ जैसी मास्टरपीस को बड़े पर्दे पर देखने का अनुभव घर में देखने से एकदम अलग है। ऑडियंस का रिस्पॉन्स देखकर लगता है कि अच्छी फि़ल्मों की कद्र अभी भी बाकी है, और तुम्बाडÓ जैसी फिल्मों का आकर्षण कभी खत्म नहीं होता। साथ ही दर्शकों का रिस्पांस उस विवाद को भी विराम देता है कि कोविड के फलस्वरूप जो लॉकडाउन हुआ था उसने दर्शकों की कॉन्टेंट कंजम्पशन के पैटर्न को बदल कर रख दिया है और अब वो सिनेमा हॉल तक नहीं जाना चाहते हैं। लेकिन अच्छी पुरानी फि़ल्मों को देखने जाने वालों की भीड़ ने स्पष्ट इशारा कर दिया है कि वो थिएटर तक आने के लिए तैयार हैं, बस अच्छी फि़ल्में तो बनाई जाएं।तुम्बाडÓ अमेजऩ प्राइम पर है, देख लीजिएगा।




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