भाजपा का गुजारा नीतीश बगैर नहीं
- 12-Sep-25 12:00 AM
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हरिशंकर व्यासबिहार में भाजपा कहे या न कहे विधानसभा चुनाव में एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार ही है। भाजपा का गुजारा उनके बगैर नहीं है। पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा को लग गया था नीतीश के बगैर गुजारा नहीं होगा तो राजद के साथ उनका गठबंधन खत्म करा कर उनको फिर से एनडीए का मुख्यमंत्री बनाया गया। जब लोकसभा चुनाव में भाजपा को उनकी इतनी जरुरत थी तो समझा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में कितनी जरुरत होगी। इसलिए एक तरफ से अघोषित रूप से ही सही लेकिन नीतीश कुमार का चेहरा होगा। उनके नाम, काम और हाल के दिनों में की गई लोक लुभावन घोषणाओं के दम पर एनडीए चुनाव लड़ेगा।लेकिन सवाल है कि दूसरी ओर से कौन लड़ेगा क्या जिस तरह लोकसभा चुनाव में विपक्ष सामूहिक नेतृत्व में लड़ा, कोई चेहरा घोषित नहीं किया और भाजपा को कई राज्यों में नुकसान पहुंचा दिया वैसे ही बिहार का विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी हो रही है यह सवाल इसलिए है क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल और लालू प्रसाद के तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस की ओर से तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा नहीं हो रही है। तेजस्वी यादव ने बिहार में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान एक जनसभा में राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की अपील कर दी फिर भी राहुल ने उनको मुख्यमंत्री बनाने की अपील नहीं की। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों ने तेजस्वी के नाम की घोषणा पर सीधा सवाल पूछा तब भी राहुल गांधी उसे टाल गए। कहा जा रहा है कि इससे राजद के नेता इतने नाराज हुए कि उन्होंने कांग्रेस से कह दिया कि एक सितंबर को पटना के गांधी मैदान में कांग्रेस खुद रैली कर ले। बाद में यह रैली रद्द हो गई। कहा जा रहा है कि महागठबंधन के अंदर सीट बंटवारा नहीं हो रहा है और इस वजह से मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा भी नहीं हो रही है।लेकिन इसके अलावा कुछ राजनीतिक कारण भी हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि कांग्रेस के रणनीतिकार और चुनाव सर्वे करने वाली टीम का मानना है कि अगर चुनाव नीतीश कुमार बनाम तेजस्वी यादव का हुआ तो अपने आप एनडीए को एडवांटेज हो जाएगा। उनका कहना है कि तेजस्वी के नाम की घोषणा से विपक्षी गठबंधन को नुकसान होगा। दूसरी बात यह कही जा रही है कि तेजस्वी के नाम की घोषणा से विपक्ष को भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाने में आसानी हो जाएगी। ध्यान रहे जमीन के बदले रेलवे में नौकरी के कथित घोटाले में तेजस्वी यादव को भी आरोपी बनाया गया है। हालांकि 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहने के दौरान हुए इस कथित घोटाले के समय तेजस्वी नाबालिग थे। फिर भी वे आरोपी हैं। इस मामले में दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में आरोप तय हो गया है और सुनवाई शुरू हो गई है। अगर तेजस्वी सीएम का चेहरा बनाए जाते हैं तो फिर उस कथित घोटाले का मुद्दा जोर शोर से उठाया जाएगा और दावा किया जा रहा है कि सजा पाने की कगार पर खड़े एक नेता को विपक्ष ने मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया है।तीसरी बात यह है कही जा रही है कि नीतीश के मुकाबले तेजस्वी का चेहरा आने पर परिवारवाद का मुद्दा बनेगा। एनडीए की ओर से राहुल गांधी और तेजस्वी का चेहरा दिखा कर हमला किया जाएगा। लेकिन इससे ज्यादा चिंता इस बात की है कि तेजस्वी के नाम की घोषणा से गैर यादव पिछड़ी जातियों को एनडीए के पीछे एक जुट करने में आसानी हो जाएगी। फिर 2005 से पहले के कथित जंगल राज की याद दिला कर सवर्णों को भी साथ लेना बहुत आसान हो जाएगा। एक समस्या यह भी बताई जा रही है महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी अपने को उप मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किए बैठे हैं। अगर तेजस्वी के नाम की घोषणा होती है तो मुकेश सहनी का नाम भी घोषित करना होगा और तब यह सवाल उठेगा कि मुकेश सहनी से कई गुना ज्यादा बड़ी पार्टी कांग्रेस का उप मुख्यमंत्री क्यों नहीं घोषित हो रहा है दलित प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम का नाम घोषित करने की मांग उठेगी। इस तरह से पूरा मामला बहुत जटिल हो जाएगा और जातियों का संतुलन भी नहीं सधेगा। अगर यादव, मल्लाह और दलित का नाम घोषित हुआ तो एनडीए से कुशवाहा और सवर्ण वोट तोडऩे का अब तक हो रहा प्रयास विफल हो जाएगा।
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