भारतीय राजनीति का असली चेहरा
- 16-Sep-24 12:00 AM
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अजय दीक्षितचार राज्यों के आसन्न चुनावों में अभी मात्र जम्मू कश्मीर और हरियाणा के चुनावों की घोषणा हुई है । झारखण्ड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की तारीख अभी चुनाव आयोग ने घोषित नहीं की है । महाराष्ट्र में धर्म संकट है । भाजपा नहीं चाहेगी कि अब शिंदे फिर से मुख्यमंत्री बने । वे अपने भाजपा कैडर का कोई नेता को चुनेंगे । यह दूसरी बात है कि शिवसेना (शिंदे गुट) में शामिल हो जाये । पहले कई चुनावों में शिवसेना और भाजपा ने साथ- साथ चुनाव लड़ा है । फिर यदि शिंदे गुट भाजपा में शामिल हो भी जाता है तो भी भाजपा के पास अपने नेता हैं, महाराष्ट्र में । विपक्षी दलों का आरोप है कि हरियाणा में भाजपा की स्थिति कमजोर है । इसी से उनके अनुरोध पर हरियाणा का चुनाव चार दिन आगे खिसका दिया गया । अब भारत में तो स्थानीय स्तर पर रोज त्योहार होते हैं । अब तर्क कुछ गले नहीं उतरता कि चुनाव आयोग भाजपा के अनुरोध पर चुनाव की तारीख आगे बढ़ानी पड़ी । ऐसे में हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल है। वह मुख्यमंत्री के लिए कई उम्मीदवार हैं । हुड्डा एक हैं, शैलजा और सुरजावाला भी । यूं कांग्रेस हाईकमान ने कहा है कि ये दोनों संसद सदस्य हैं । इसी कारण विधायक का चुनाव नहीं लड़ सकते । राहुल गांधी चाहते थे कि विपक्षी वोट बंटे नहीं । इसी से आम आदमी पार्टी से वे समझौता चाहते थे । परन्तु स्थानीय नेतृत्व अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं । अत: दोनों के बीच वार्ता फेल हो गई । अब आम आदमी पार्टी ने विनेश फोगट के खिलाफ भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है । अब इण्डिया एलाइंस का क्या?दिल्ली में दोनों ने सात सीटों के लिए समझौता करके चार और तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था । जे.एन.यू. के छात्र नेता कन्हैया कुमार सुनीता केजरीवाल से भी मिले थे । अरविन्द केजरीवाल ने कन्हैया कुमारके लिए प्रचार भी कया था । परन्तु कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को असफलता मिली । कांग्रेस ने विनेश फोगट को लेकर जाट वोट पक्के कर लिये हैं । पिछड़ी जाति और अनुसूचित जाति के वोट परम्परा के अनुसार शायद कांग्रेस को ही मिले । परन्तु हरियाणा में जनहित जनता पार्टी और आजाद की पार्टी भी मैदान में है । इस प्रकार विपक्ष के वोट बंटने पर भाजपा को फायदा होगा । विपक्ष का यह भी आरोप है कि वर्तमान भाजपा सरकार हरियाणा में अल्पमतमें हैं । परन्तु राज्यपाल वोटिंग नहीं कराना चाहते । चुनाव से छ: महीने पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री तो बदला परन्तु जिनको टिकट नहीं मिला, ऐसे भाजपा के दिग्गज नेता अब दूसरी पार्टी से या स्वतंत्र रूप से लड़ रहे हैं । नवीन जिंदल की मां भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं । अब नवीन जिंदल मां का साथ देंगे या पार्टी का, या अंदर खाने कुछ और पक रहा है ।असल में भारत में किसी भी राजनैतिक दल में शुचिता नहीं रह गई है । आर.एस.एस. भाजपा को चेताती रहती है परन्तु मोहन भागवत की कौन सुनता है । भाजपा अध्यक्ष ने तो कुछ महीने पहले इण्डियन एक्सप्रेस में लेख लिखकर कहा था कि भाजपा को अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक दल की जरूरत है । पिछले कुछ चुनावों में नीतीश कुमार कभी बीजेपी के साथ थे, कभी विरोधी । असल में भारत में राजनैतिक दलों को अपने लिए कुछ मापदण्ड तय करने चाहिए कि पक्ष और प्रतिपक्ष (विपक्ष नहीं) में परस्पर सामंजस्य हो । यही देश हित में होगा ।
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