भारत के लिए चुनौतीपूर्ण

  • 07-May-24 12:00 AM

डॉ. ब्रह्मदीप अलूनेहिन्द महासागर में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए बीजिंग और नई दिल्ली, दोनों मालदीव को अपने प्रभाव क्षेत्र में रखने के लिए कृतसंकल्पित रहे हैं। इसका असर मालदीव की घरेलू राजनीति पर भी देखने को मिल रहा है।भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण पश्चिम में स्थित इस द्वीपीय देश में मुइज्जू के राजनीतिक उभार से भारत की समस्याएं बढ़ रही हैं। दरअसल, मुइज्जू भारत की मालदीव में उपस्थिति को अनियंत्रित बता कर देश की सत्ता के शीर्ष पर आए हैं, और भारत विरोध की नीति के सहारे देश की संसद में पूर्ण बहुमत हासिल करने में कामयाब हो गए हैं। लेकिन अब मुइज्जू ने जिस प्रकार देश की संसद में भी बंपर बहुमत हासिल किया है, उससे लगता है कि उनके भारत विरोध और चीन परस्त नीतियों को जनता ने पसंद किया है। ऐसे में यह विचार लाजिमी है कि आखिर, मालदीव की जनता भारत जैसे विसनीय मित्र के खिलाफ जाकर चीन की कुटिल कर्जनीति में क्यों उलझना चाहती है, और इसके दूरगामी परिणाम भारत के लिए कितने चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। जनसंख्या की लिहाज से बहुत छोटे इस इस्लाम बाहुल्य देश में पिछले कुछ वर्षो में परंपरावाद को उभारने की कोशिशें राजनीतिक फायदा देने वाली साबित हुई हैं।खाड़ी देशों में रोजगार के लिए जाने वाले मालदीव के हजारों नागरिकों की कथित धार्मिंक अभिव्यक्ति को मुइज्जू ने वोट में बदलने में कामयाबी हासिल कर ली है। उन्होंने भारत से ऐतिहासिक जुड़ाव को नजरअंदाज कर बदलती परिस्थितियों में तुर्की, पाकिस्तान और सऊदी अरब की ओर रुख किया। फिलिस्तीन जैसे भावनात्मक मुद्दे को धार्मिंक आधार पर उठाया तथा इस्लामिक आदर्शवाद पर आधारित नये मालदीव की परिकल्पना को राजनीतिक आधार पर जनता के सामने रखा। मुइज्जू ने संसद में संविधान में संशोधन के लिए आवश्यक दो तिहाई बहुमत हासिल कर लिया है। अर्थ यह कि वे राजनीतिक संस्थागत दृष्टिकोण से, सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं खासकर न्यायपालिका की शक्तियां भी प्रभावित हो सकती हैं। मालदीव में राजनीतिक उथल-पुथल का इतिहास रहा है। भारत समर्थक राजनीतिक दलों पर अंकुश लगाने के लिए मुइज्जू प्रमुख नेताओं को जेल में डाल सकते हैं।मुइज्जू ने सत्ता में आने के बाद चीन से मजबूत रिश्तों को तरजीह दी। वे अब तक नई दिल्ली नहीं आए हैं, बीजिंग की राजकीय यात्रा पर जाकर निवेश के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। चीन के साथ गैर-घातक हथियारों को मुफ्त में देने के साथ-साथ मालदीव के सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने के लिए एक सैन्य सहायता समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। भारत और अमेरिका ने पहले मालदीव की सेना को प्रशिक्षित किया था। भारत मालदीव को हिन्द महासागर क्षेत्र में प्रमुख समुद्री भागीदार के रूप में मान्यता देता है।यह द्वीपीय राष्ट्र भौगोलिक दृष्टि से भारत और कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों पर नजर रखता है। भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि मालदीव व्यापार, पर्यटन और शिपिंग के लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। मालदीव रणनीतिक रूप से लक्षद्वीप द्वीप समूह से केवल सात सौ किलोमीटर और भारत की मुख्य भूमि से बारह सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मालदीव में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत से इसकी निकटता को देखते हुए महत्त्वपूर्ण सुरक्षा चिंताओं को जन्म देता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन ने तेजी से सैन्य आधुनिकीकरण किया है, इससे भारत की सामरिक और आर्थिक क्षमताओं के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं।हिन्द महासागर में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव और उसकी महत्त्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल में मुइज्जू की दिलचस्पी कम नहीं है। 2023 में मालदीव के राष्ट्रपति पद पर मोहम्मद मुइज्जू के चुने जाने के बाद से क्षेत्र में देश के रिश्ते बदल गए हैं। मालदीव ने चीन के साथ रक्षा समझौतों और बुनियादी ढांचे के सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन के समुद्री अनुसंधान जहाज जियांग यांग होंग को मालदीव के बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति देने से चीन का प्रभाव और भी पुष्ट होता है। जनवरी में जब मुइज्जू ने चीन का दौरा किया था, इसके चौबीस घंटे के बाद चीन के इस जहाज ने अपनी यात्रा की शुरुआत की थी।संभवत: मुइज्जू इसके जरिए भारत को यह संदेश भी दे देना चाहते थे कि वे चीन से रिश्तों को लेकर कोई समझौतावादी रुख नहीं अपनाएंगे। बारह सौ द्वीपों की श्रृंखला से बने मालदीव के अधिकांश द्वीप निर्जन हैं। मालदीव लंबे समय से भारत के प्रभाव क्षेत्र में रहा है। वहां अपनी मौजूदगी बनाए रखने से दिल्ली को हिन्द महासागर के एक प्रमुख हिस्से पर नजर रखने की क्षमता मिलती है।मुइज्जू को देश में चीन के हितों के समर्थक के रूप में देखा जाता है। भारत और चीन, दोनों रणनीतिक रूप से स्थित द्वीपों में अपनी उपस्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, जो व्यस्त पूर्व पश्चिम शिपिंग लेन में फैले हुए हैं। चीन, अपनी तेजी से बढ़ती नौसेना के साथ, रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थान तक पहुंच तथा भारत को रोकना चाहता है। दिल्ली और बीजिंग, दोनों ने मालदीव को बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए ऋण और अनुदान के रूप में करोड़ों डॉलर दिए हैं। मुइज्जू अब चीन पर निर्भरता बढ़ा रहे हैं, और यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण बन रहा है।भारत को हिन्द महासागर के अहम साझेदार मालदीव के साथ राजनीतिक गतिरोध को दूर करने की कोशिशें करते रहना होगा। आर्थिक और सुरक्षा सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने को प्राथमिकता देनी होगी। जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे प्रमुख सुरक्षा भागीदारों के साथ भी रक्षा सहयोग को मजबूत करना होगा जिससे चीन को इस क्षेत्र में निर्णायक रणनीतिक बढ़त लेने से रोका जा सके। चीन मालदीव जैसे छोटे से देश की भारत पर सैन्य निर्भरता कम करने के लिए उसकी सैन्य क्षमताओं का विकास कर रहा है, इससे मालदीव की सेना मजबूत होगी और इसके राजनीतिक दुरुपयोग की आशंकाएं भी बढ़ सकती हैं। मुइज्जू चीन के उस सामरिक चक्रव्यूह को रचने में मददगार बन रहे हैं, जिसके अनुसार चीन मालदीव में नौसैनिक अड्डा बना कर समुद्री सीमा पर भारत को रणनीतिक रूप से घेर ले जिससे हिमालय की सीमा पर भारत पर सैन्य दबाव बढ़ सके।




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