मालदीव में चीन की जीत!
- 03-Oct-23 12:00 AM
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श्रुति व्यासभारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। मालदीव को जो नया राष्ट्रपति मिला है वह चीन समर्थक हैं। मोहम्मद मुइज्जु राष्ट्रपति निर्वाचित हुए है। सो फिर भारत और इस द्वीपसमूह के रिश्तों में गिरावट आएगी। मुइज्जु एक ऐसी पार्टी के नेता हैं जिसके पिछले शासनकाल में चीन से भारी कर्ज लिया गया था। अपने लक्जऱी सीरिसार्टों और विख्यात पर्यटकों के लिए मशहूर द्वीपों के इस देश का ताजा चुनावी फैसला भारत को पसंद नहीं आ सकता है। भारत को माले में अपना रणनीतिक प्रभाव कायम रखने में निश्चित ही बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।हालांकि यह खींचातानी नई नहीं है। परस चुनाव में भारत बनाम चीन का नैरेटिव चरम सीमा पर पहुंचा। चुनाव में मोहम्मद मुइज्जु ने सत्तासीन मोहम्मद सोलह को पराजित किया है। उन्होंने प्रचार के दौरान ही साफ़ कर दिया था कि मालदीव पर भारत के कथित प्रभाव को कम करना उनके एजेंडे में काफी ऊपर है। सन् 2018 में अपनी चकित कर देने वाली चुनावी जीत के बाद सोलेह अपने देश और भारत – जिससे उसके काफी पुराने सम्बन्ध रहे हैं – को नज़दीक लाए थे।उन्होने चीनी निवेश पर अंकुश लगाया था। चुनाव प्रचार के दौरान मुइज्जु ने सोलेह पर आरोप लगाया था कि वे भारत से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं, भारतीय सेना को मालदीप में आने दे रहे हैं और भारत को मालदीव में अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका देकर देश की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं।मालदीव बिखरे हुए द्वीपों के समूह का देश है। इसकी जनसंख्या केवल पांच लाख है। लेकिन भारत, चीन और पश्चिम सभी के लिए यह रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है। यह पूर्व-पश्चिम मालवाहक समुद्री मार्ग पर है जिससे कई महत्वपूर्ण सामानों का परिवहन होता है। इनमें खाड़ी से चीन को भेजा जाने वाला कच्चा तेल भी शामिल है। मालदीव को हिंद महासागर में भूराजनैतिक प्रभाव एवं नियंत्रण कायम करने के दरवाज़े के रूप में भी देखा जाता है, खासतौर से चीन के लिए, जो इस क्षेत्र में जोरशोर से अपना दबदबा कायम करने का प्रयास कर रहा है। लेकिन यह भी सही है कि मालदीव कब क्या कर देगा, यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। यहाँ तीन दशकों की तानाशाह सरकार के बाद सन् 2008 में लडख़ड़ाता सा लोकतंत्र कायम हुआ। लोकतांत्रिक शासन में यहां की विदेश नीति, चीन और भारत के बीच झूलती रही और राजनीति में जबरदस्त भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का बोलबाला रहा।भारत के लिए हिंद महासागर में,अपने नजदीकी इलाके में चीनी प्रभाव न बढऩे देना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए वर्तमान सोलेह सरकार के कार्यकाल में भारत ने मालदीव में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में 2 अरब डालर से अधिक का निवेश किया। साथ ही प्रशिक्षण एवं सुरक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया। इसका एकमात्र उद्देश्य अपना प्रभाव बढ़ाना था। इसी साल विदेश मंत्री एस जयशंकर मालदीव गए और उन्होंने वहां देश को दो समुद्री एबूलेंस प्रदान कीं, कई विकास समझौतों पर हस्ताक्षर किए, और इस बात पर जोर दिया कि भारत मालदीव की मदद के लिए "हमेशा तैयार" है। दोनों देशों के संबंध इतने मजबूत और गहरे थे कि माले में भारतीय संस्कृति केन्द्र खोला गया। क्षेत्रीय सुरक्षा भारत सहित दूसरे सभी देशों के लिए महत्वपूर्ण है। तभी सरकारों ने मालदीव में इस्लामिक कट्टरवाद और जिहादवाद की ओर उतना ध्यान नहीं दिया जितना दिया जाना चाहिए था। जुलाई में अमरीकी वित्त विभाग ने मालदीव में सक्रिय ऐसे 20 नेताओं और धन सुलभ करवाने वाले लोगों की सूची जारी की थी जो आईएसआईएस-खोरसान और अलकायदा से जुड़े हुए हैं।सन् 2022 में पूर्व राष्ट्रपति यामीन ने भारत को भगाओ" अभियान शुरू किया था जिसे कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों का समर्थन मिला। हालांकि सोलेह ने इस अभियान को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतराÓ बताते हुए इस पर बिना देरी किये पाबंदी लगाई लेकिन इससे भारत विरोधियों को बल मिला। चुनावों के आसपास माहौल इस हद तक भारत विरोधी हो गया था कि पिछले सप्ताह मालदीव में भारतीय उच्चायोग को एक वक्तव्य जारी कर स्थानीय मीडिया में आ रही उन खबरों को झूठाÓ बताना पड़ा जिनका लक्ष्य "उच्चायोग के अधिकारियों को धमकाकर भारत और मालदीव के मैत्रीपूर्ण संबंधों पर दुष्प्रभाव डालना" था।लेकिन मुइज्जू की जीत का मतलब है कि चीन और मालदीव की नजदीकियां बढ़ेंगी जिसका बुरा असर भारत पर पड़ेगा। यह तो समय ही बताएगा कि भारत हिंद महासागर में अपनी स्थिति कायम रखने में आगे कितनी दिक्कतों का सामना करेगा।
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