मिशन में असफल

  • 09-Jun-24 12:00 AM

योगेश कुमार गोयलअठारहवीं लोक सभा के लिए हुए चुनावों के जो परिणाम सामने आए हैं, वे बेहद चौंकाने वाले हैं। न तो भाजपा स्वयं के 370 और न ही एनडीए के 400 पार के मिशन को पूरा करने में सफल हो पाई।हालांकि चुनाव परिणामों की घोषणा के दो ही दिन पहले जारी हुए तमाम एग्जिट पोल में एनडीए के 400 पार होने की संभावना जताई गई थी लेकिन हुआ इसका उलट यानी एनडीए 300 का आंकड़ा भी नहीं छू पाया जबकि इंडिया गठबंधन अप्रत्याशित रूप से 230 से भी ज्यादा सीटें हासिल करते हुए मजबूत विपक्ष बनने में सफल हुआ है।भाजपा जहां 240 सीटों पर और एनडीए 291 सीटों पर सिमट गया, वहीं यह भी पूरी तरह स्पष्ट हुआ है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू 2014 और 2019 की भांति नहीं चल सका। हालांकि भाजपा एक बार पुन: देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी है लेकिन अपने बूते बहुमत के जादुई आंकड़े को छूने से काफी पीछे रह गई। उसके लिए चिंता की बात यह है कि 7 राज्यों तमिलनाडु, पंजाब, सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड तथा 4 केंद्रशासित प्रदेशों पुडुचेरी, चंडीगढ़, लद्दाख और लक्षद्वीप में खाता खोलने में भी नाकाम रही। मोदी के नेतृत्व में केंद्र में उनके लगातार तीसरे कार्यकाल में यह पहली बार है, जब उन्हें स्थायी सरकार चलाने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा यानी 10 वर्षो बाद फिर से गठबंधन की अहमियत का दौर लौट आया है। जद (यू) और टीडीपी इस बार किंगमेकर की भूमिका में उभरे हैं।हालांकि हिमाचल, दिल्ली, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया है और गुजरात में भी एक सीट छोड़कर बाकी सभी सीट उसकी झोली में गई हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में पार्टी को जितना बड़ा झटका लगा है, उसका अनुमान संभवत: पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी नहीं था। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और महाराष्ट्र में भी भाजपा को नुकसान हुआ है। हालांकि कर्नाटक में एनडीए का प्रदर्शन शानदार रहा और टीडीपी के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश में भी इसने विजय पताका लहराई, केरल की भी एक सीट जीतने में भाजपा सफल रही लेकिन दक्षिण भारत में भाजपा का वैसा जादू नहीं चला, जैसी पार्टी को उम्मीद थी।दूसरी ओर, कांग्रेस ने जिस तरह का दमदार प्रदर्शन करते हुए 99 सीटें जीतीं उससे कांग्रेस को निश्चित रूप से संजीवनी मिली है। कांग्रेस 2014 में केवल 44 और 2019 में 52 सीट ही जीत सकी थी। उस गिरते ग्राफ का ठीकरा राहुल गांधी पर फोडऩे के प्रयास हुए थे लेकिन 2024 के चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद गठबंधन में राहुल की स्वीकार्यता बढऩे के साथ ही निश्चित रूप से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी मजबूती मिलेगी।1984 में कांग्रेस को करीब 12.01 करोड़ वोट प्राप्त हुए थे, उसके बाद इस बार उसे अब तक के सबसे ज्यादा 13.6 करोड़ से भी अधिक मत प्राप्त हुए हैं तथा कांग्रेस धरातल पर मजबूती से खड़ी होने में सफल हो पाई है। हालांकि यह अलग बात है कि चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार भाजपा को 23.45 करोड़ से भी ज्यादा वोट मिले हैं, और कांग्रेस अभी भी उसके मुकाबले कहीं नहीं खड़ी है। कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने करिश्माई जीत दर्ज की है।दरअसल, 2019 के चुनाव में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था और बसपा को 10 लेकिन सपा को 5 सीटें ही मिल सकी थीं। लोक सभा चुनाव में वोट शेयर के लिहाज सपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1998 में था, जब उसे करीब 29 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि सीटों के दृष्टिगत उसका बेहतरीन प्रदर्शन 2004 में था, जब उसे 35 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन 2024 के चुनाव में सपा 37 सीटें जीतने में सफल रही। जहां तक पूरे आत्मविश्वास के साथ 400 पार का नारा देने वाले एनडीए की हार के प्रमुख कारणों की बात है तो सबसे हैरानी बात तो यही है कि राम मंदिर जैसा आस्था और सनातन से जुड़ा बड़ा मुद्दा भी भाजपा के ज्यादा काम नहीं आया।जनवरी महीने में ही अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की थी और चुनाव में इस मुद्दे को भुनाने के लिए भाजपा ने हरसंभव प्रसास भी किए थे लेकिन विपक्ष के बेरोजगारी, महंगाई और सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना जैसे मुद्दे इस पर कहीं ज्यादा हावी रहे। महंगाई का मुद्दा भी चुनाव के सातों चरणों के दौरान छाया रहा। हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 से 2024 तक के एनडीए सरकार के एक दशक के कार्यकाल में महंगाई बढऩे की बजाय घटी है।आंकड़ों के अनुसार 2013 में महंगाई दर 10.02 प्रतिशत थी, जो 2023 में घटकर महज 5.69 प्रतिशत रह गई थी लेकिन यह बात थी केवल सरकारी आंकड़ों की जबकि आम जन के दैनिक जीवन से जुड़ी जरूरतों के सामान की कीमतें पिछले पांच वर्षो में 30 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ी, जिससे खाने की थाली लगातार महंगी होती जा रही है और महंगाई का सीधा असर लोगों के जीवन निर्वाह पर पड़ रहा है। इस कारण भी मध्य वर्ग सरकार से नाराज था।किसानों को हिन्टी पट्टी का कोर वोटर माना जाता है और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्यों में किसानों की लगातार नाराजगी भी भाजपा पर भारी पड़ी। इसका असर राजस्थान, महाराष्ट्र और बिहार तक में भी पड़ा। भाजपा ने 2014 से अभी तक तीनों लोक सभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही लड़े हैं। पहली बार 2014 के चुनाव में पार्टी अपने बूते 282 सीटें जीत कर अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुई थी।2019 में भी मोदी के ही चेहरे पर पार्टी ने रिकॉर्ड 303 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन इस बार के चुनाव में वह 240 सीटों पर सिमट गई यानी 2014 के मुकाबले 42 सीटें और 2019 के मुकाबले 63 सीटें कम। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने 371784 मतों के बड़े अंतर से आपÓ के अरविंद केजरीवाल को पराजित किया था, वहीं 2019 के चुनाव में उन्होंने 479505 मतों के भारी अंतर से सपा की शालिनी यादव को हराया था। हालांकि इस बार भी वाराणसी से उन्होंने कांग्रेस के अजय राय को हराया है लेकिन उनकी जीत का अंतर घटकर 152513 ही रह गया है।ऐसे में चौंकाने वाले इस जनादेश ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अब भाजपा का काम मोदी के चेहरे के भरोसे रहने से ही नहीं चलने वाला, बल्कि पार्टी और गठबंधन के निर्वाचित सांसदों को भविष्य में रिकॉर्ड जीत के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में काम भी बेहतर करना होगा।




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