मोदी-शाह की नीतीश, माया, अखिलेश पर रहम!

  • 08-Nov-23 12:00 AM

हरिशंकर व्यासस्वाभाविक सवाल है कि मोदी राज का नंबर एक टारगेट यदि अरविंद केजरीवाल हैं तो नरेंद्र मोदी की कृपा पाए कुछ विरोधी नेता भी होंगे। वे कौन हैं? जवाब में मोटा तथ्य यह है कि मायावती के खिलाफ कभी ईडी-सीबीआई के एक्शन नहीं हुए। न ही कभी ओवैसी की कट्टरपंथी मुस्लिम पार्टी पर गाज गिरी। और न ही अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी पर कार्रवाई हुई। हां, इसमें समाजवादी पार्टी के आजम खान और यूपी के मुस्लिम नेताओं का मामला अलग है।तभी अगले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश भाजपा का सर्वाधिक सुरक्षित राज्य है। यूपी की 80 सीटों में भाजपा एलायंस के पास मौजूदा लोकसभा में 64 सीटें है। भाजपा में विश्वास है कि छह महीने बाद के लोकसभा चुनाव में यह संख्या बढ़ेगी। इसलिए क्योंकि न अखिलेश और मायावती में एलायंस बनेगा और न कांग्रेस व अखिलेश में पटरी बैठेगी। वैसे गुरूवार को खबर थी कि समाजवादी पार्टी 65 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी और बाकी सीटें जयंत चौधरी की लोकदल व कांग्रेस के लिए छोड़ेगी।इससे कुछ नहीं होना है। दरअसल पांच विधानसभा चुनावों में छतीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और मिजोरम में यदि कांग्रेस ने ठीक-ठाक प्रर्दशन किया तो कांग्रेस के भाव अनिवार्यत: बढ़ेंगे। राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के ईर्द-गिर्द ऐसे चुनाव प्रबंधक, सर्वेयर, नए नेता पैदा हो गए हैं जो नतीजो से कुप्पा हो कर राहुल-प्रियंका को अधिकाधिक लोकसभा सीटों पर लडऩे के लिए मनाएंगे, उकसाएंगे। नतीजतन इंडियाÓ बिखर भी सकता है।वह कांग्रेस के लिए आत्मघाती होगा तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और मायावती को भड़काना व बिदकाना होगा। भाजपा अलग से मायावती और अखिलेश पर काम करते हुए होगी। हां, यह माना जा सकता है कि यूपी में मोदी-शाह अपने मनमाफिक बसपा तथा सपा से राजनीति करवाएंगे। इसलिए क्योंकि मोदी-शाह अधिक बारीकी से ग्राउंड रियलिटी को जाने हुए होते हैं। यूपी में ऐसी तिकोनी लड़ाई बनवाएंगे, जिससे दलित और मुस्लिम वोट कंफ्यूज रहे तो ओबीसी भी भाजपा के लिए गोलबंद रहे। जाट और यादव वोट सभी में बिखराव होगा। जाहिर है भाजपा को यूपी में टक्कर तभी मिल सकती है जब सपा, बसपा, लोकदल और कांग्रेस चारों में चुपचाप एलायंस बने। ये एक-एक सीट पर हिसाब से साझा उम्मीदवार खड़ा करें तभी भाजपा को दस-बीस सीटों का नुकसान हो सकता है। अन्यथा राम मंदिर और हिंदू-मुस्लिम के धुवीकरण में भाजपा यूपी में लगभग आंधी लिए हुए होगी।मोदी राज की कृपा बिहार में नीतीश कुमार पर भी है। सोचें, नीतीश कुमार ने मोदी-शाह को कैसा धोखा दिया। प्रदेश में भाजपा की राजनीति बिगाड़ी बावजूद इसके नीतीश और उनके मंत्रियों पर ईडी, सीबीआई नहीं पहुंची है। हां, नीतीश सरकार के करीबी कुछ ठेकेदारों के यहां जरूर छापेमारी हुई है लेकिन जैसे केजरीवाल और उनके मंत्रियों, ममता बनर्जी, कांग्रेस मुख्यमंत्रियों, नेताओं, हेमंत सोरेन, राहुल गांधी, तेजस्वी-लालू यादव आदि को लेकर ईडी-सीबीआई के मिशन चले हैं वैसा कुछ भी नीतीश कुमार के साथ नहीं हुआ है। दो ही कारण हैं। बिहार में भाजपा अकेले 2019 जितनी सीटें नहीं जीत सकती है तो चुनाव बाद नीतीश कुमार को साथ लेने का शायद विकल्प बना रखा है। या चुनाव से ऐन पहले बिहार में विपक्षी एलायंस इंडियाÓ को पंक्चर कराने की रणनीति हो।मोटा-मोटी नीतीश कुमार भी सेफ चल रहे हैं। उनकी दोनों नावों पर चुपचाप सवारी है। उनका इंडियाÓ एलायंस में रहना अब इसलिए मजबूरी है क्योंकि ओबीसी के साथ यादव, मुस्लिम, दलित वोटों का गणित राजद-कांग्रेस की ओर गोलबंद है। जो हो, नीतीश कुमार और उनके मंत्रियों की ओर लोकसभा चुनाव से पहले शायद ही मोदी सरकार की एजेंसियां दौड़ें।




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