राजनीति : ये क्या कह गए
- 14-Nov-23 12:00 AM
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प्रेम कुमार मणिबिहार में कुछ हो, न हो, राजनीतिक गतिविधियां, चर्चा, और कुछ नहीं तो हंगामा तो होता ही रहता है। देश के पांच प्रांतों में विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं, लेकिन बिहार की राजनीतिक खबरों ने सबको पीछे छोड़ दिया।पूरा देश आज दिल थाम कर बिहार के समाचार पर केंद्रित है। वहां दो सदनों वाले विधानमंडल में शीतकालीन सत्र चल रहा था। इसी सत्र में जाति-सर्वेक्षण का आर्थिक पहलू प्रस्तुत किया गया और सरकारी सेवाओं में पहले से चले आ रहे आरक्षण को पंद्रह फीसद बढ़ा कर 75 फीसद कर दिया गया।यह बिल सर्वसम्मत से स्वीकार लिया गया, लेकिन सत्तापक्ष के लिए दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि आरक्षण संबंधी यह बिल आमचर्चा में नहीं रहा, बल्कि इसकी जगह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा दिए गए दो वक्तव्य इतने विवादित हो गए कि अनायास वह चर्चा के केंद्र में आ गए। इसे लेकर देशव्यापी हंगामा हुआ। तमाम चैनलों का आकषर्ण नीतीश कुमार के वे दो बयान हो गए जो दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति पर अमेरिका द्वारा जापान के दो नगरों पर गिराए गए एटम बम की तरह अप्रत्याशित थे। चूंकि नीतीश कुमार की छवि एक गंभीर और मर्यादित नेता की रही है इसलिए लोगों को आश्चर्य अधिक हुआ। हालांकि बिहार के लोग नीतीश कुमार के बिगड़े बोल से परिचित हो चुके हैं। उनकी जुबान पिछले कुछ वर्षो में कई बार फिसली है और वे कुछ की जगह कुछ और बोल जाते हैं।पिछले विधानसभा चुनाव प्रचार में भी कई बार वह अमर्यादित हुए, लेकिन लोगों ने समझा शायद यह वोटरों को चार्ज करने का उनका अपना तरीका हो। विधान सभा में वह तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर भी भड़क गए और कुछ ज्यादा बोल गए। हालांकि कुछ महीने बाद ही दोनों की दोस्ती हुई और बिहार के महागठबंधन में नीतीश शामिल हुए। इसी दौर में भाजपा के विरु द्ध एक राष्ट्रीय स्तर का प्रतिपक्ष गठन का संकल्प उन्होंने लिया और सार्थक पहल भी की। कुछ समय तक प्रधानमंत्री के भावी उम्मीदवार के तौर पर भी उनके समर्थक पेश करते रहे, लेकिन बस दो रोज में किसी और ने नहीं स्वयं नीतीश कुमार ने ही अपनी छवि तार-तार कर ली।कोई सोच भी नहीं सकता था कि मुख्यमंत्री के आसन पर बैठा कोई नेता इस तरह की गलती कर सकता है। विधानसभा में उनका वक्तव्य वाकई चौंकाने वाला था। वह जनसंख्या नियंत्रण में शिक्षा की भूमिका बतला रहे थे, लेकिन वह ऐसे प्रसंगों को उठाने लगे, जो कहीं से मर्यादित नहीं थे। शिक्षित विवाहिताएं जनसंख्या नियंत्रण में भूमिका निभाती हैं। वह परिवार नियोजन के महत्त्व को समझती हैं। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण में वृद्धि हुई है। मुख्यमंत्री यही कहना चाहते थे, लेकिन उन्होंने यौन क्रिया को समझाते हुए यौनांगों का इतने अश्लील और खुले रूप में चर्चा की कि विधानसभा में बैठी महिला सदस्य झेंप गई।अमूमन ऐसी चर्चा मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी सार्वजानिक तौर पर नहीं करता है। इतना ही नहीं कि गलती से उनके मुंह से बात निकल गई। वह उसी रोज विधानपरिषद में भी पहुंचे और वहां भी इस वक्तव्य को इसी रूप में दुहराया।इसे लेकर जब देशव्यापी हंगामा हुआ और प्रधानमंत्री तक ने उनके इस आचरण की निंदा की तब अगले रोज उन्होंने सार्वजानिक तौर से मुआफी मांगी। कहा, मैं स्वयं अपनी निंदा करता हूं। एक मुख्यमंत्री को इतना विवश शायद ही कभी देखा गया हो, मगर अभी यह मामला थमा भी नहीं था कि उसी रोज मुख्यमंत्री ने विवाद का दूसरा मोर्चा खोल दिया। आरक्षण बिल पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी बोल रहे थे। मांझी के वक्तव्य में नीतीश कुमार या उनके दल का कोई उल्लेख भी नहीं था। उनका वक्तव्य चल ही रहा था कि बिना अध्यक्ष की अनुमति के अचानक से मुख्यमंत्री उठ खड़े हुए और पूरे गुस्से के साथ मांझी को तुम-तड़ाक करने लगे। पूरा वक्तव्य उद्धृत करने लायक नहीं है, लेकिन इसने बिहार का राजनीतिक पारा बढ़ा दिया। मांझी दलित तबके के सबसे निचली कतार से आते हैं, जिनकी न केवल उम्र बल्कि संसदीय राजनीतिक जीवन भी नीतीश से अधिक है। मुसहर समाज से आने वाले वह सक्षम राजनेता हैं, जो पहली दफा जब मंत्री बने थे, तब नीतीश कुमार का संसदीय जीवन शुरू भी नहीं हुआ था।ऐसे बुजुर्ग नेता को तुम-तड़क करके नीतीश कुमार ने अपनी ही मर्यादा तार-तार की है, ऐसा कहा जा रहा है। बिहार में दलितों की आबादी पूरी आबादी का बीस फीसद है। नीतीश कुमार पर पहले से दलित विरोधी होने का कलंक लगा हुआ है। बिहार के दलित नेताओं यथा रामविलास पासवान, छेदी पासवान और जीतनराम मांझी को एक-एक कर अपमानित करने के इन पर आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में जीतनराम के लिए भरी विधानसभा में उनका तुम-तड़ाक करना भारी पड़ सकता है। इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।पहले दिन स्त्री जाति के लिए अमर्यादित जुबान का प्रयोग और अगले रोज एक बुजुर्ग दलित राजनेता की हुई तौहीन ने नीतीश कुमार की राजनीति के लिए एकबारगी संकट ला दिया है। राजद नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक बार मुख्यमंत्री का पक्ष जरूर लिया, लेकिन उसके बाद वह चुप लगा गए। नीतीश कुमार की अपनी पार्टी के नेता मामले की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने जिस मामले में अपनी निंदा स्वयं कर के सार्वजानिक तौर पर मुआफी मांगी है,उस पर भी कुछ नेता थेथरई वाली दलील पेश कर रहे हैं।ताज्जुब तो यह कि कुछ लोग इसे कामशास्त्र की शिक्षा बता रहे हैं, मानो विधानसभा कोई पाठशाला हो और नीतीश कामशास्त्र के प्रशिक्षित शिक्षक हों। तमाम स्थितियों के अध्ययन से यही बात स्पष्ट होती है कि नीतीश मानसिक तौर पर रु ग्ण हैं। इस रूप में वह दया के पात्र हैं। परिस्थितियां ऐसी है कि दलों में आंतरिक जनतंत्र रह नहीं गया है। नेताओं ने अपने अपने दलों को कार्यकर्ताओं की जगह चापलूसों से भर रखा है। अस्वस्थ-बीमार मुख्यमंत्री को भी लोग अपने स्वार्थ में बिजूके की तरह इस्तेमाल करते रहेंगे। ऐसे में राजनीति का नफा-नुकसान किसे होगा, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।
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