राजनैतिक दलों के बिगड़े बयान, क्यों? कैसे रुके?

  • 03-Oct-24 12:00 AM

अजय दीक्षितइधर कुछ दिनों से भारत के राजनैतिक दल एक दूसरे के हर काम की समीक्षा करते हुए दूसरे दलों की आलोचना करते हैं । यह ऐसा ही है मानों हम अपने पड़ौसी के घर बने खाने की ताक-झांक करते हैं और कहें कि इन्होंने भिण्डी की सब्जी क्यों बनाई? या इन्होंने दाल मसूर की क्यों बनाई? अब यह आपके पड़ौसी के घर का मामला है, आपको इससे क्या लेना ! अब आतिशी के दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने पर कांग्रेस और अन्य दल अनेक प्रकार की बयानबाजी कर रही है । अभी लोकसभा चुनाव में आप पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था । कन्हैया कुमार तो सुनीता केजरीवाल से भी मिला था । विगत सम्बन्धों को देखते हुए कुछ तो संयम और मर्यादा बरतनी चाहिए । भाजपा के प्रवक्ता तो अब जरा जरा सी बात पर सभी गैर भाजपा पार्टी पर बिफर पड़ते हैं । अरे, अगर भाजपा को दिल्ली जीतनी है तो जनता के पास जायें । पिछले दो चुनाव में कांग्रेस को तो दिल्ली विधानसभा में एक भी सीट नहीं मिली और भाजपा को एक बार मात्र तीन और दूसरी बार छ: या सात सीटें मिलीं । असल निर्णायक जनता होती है । शायद भाजपा के प्रवक्ता समझते हैं कि सभी विपक्षी पार्टियों की आलोचना करने पर मोदी जी खुश हो जाएंगे । आजकल संबित पात्रा नहीं दिखलाई पड़ते । 2019 के लोकसभा चुनाव में वे पुरी(उड़ीसा) से हार गये थे । इस बार जीत गये परन्तु इसका बड़ा कारण यह था कि कांग्रेस की महिला प्रत्याशी ने चुनाव के लिए प्रचार किया ही नहीं । उन्होंने अपना नाम भी वापस नहीं लिया और चुनाव लड़ा भी नहीं । शायद संबित पात्रा उड़ीसा के मुख्यमंत्री बनना चाहते हों या केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह । अब भाजपा के प्रवक्ता कह रहे हैं कि आतिशी के माता-पिता अफजल गुरु का साथ दे रहे थे । अब अफजल गुरु की फांसी को मेहबूबा मुफ्ती भी ग़लत बतलाती हैं जिसके साथ भाजपा ने मिलकर कश्मीर में सरकार बनाई थी । इधर राहुल गांधी के बारे में भाजपा प्रवक्ता, महाराष्ट्र के मंत्री आदि ऐसी-ऐसी बातें कह रहे हैं जो कानून का खुला उल्लंघन है । परन्तु इस पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कुछ नहीं बोल रहा है । स्वयं स्वयं प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि कांग्रेस को भी उनके गणेश पूजन पर भी आपत्ति है । असल में मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री गणेश उत्सव पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के घर गये थे । वहां शायद पूजन चल रहा होगा तो उन्होंने उस पर भाग ले लिया । इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है । असल प्रश्न है प्रशासन और जुडीशियरी का अलग-अलग रहना । कोई यह नहीं कह रहा है कि प्रधानमंत्री कहीं जा नहीं सकते । वे देश के सर्वोच्च नेता हैं । उन पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता । परन्तु अच्छा होता कि मुख्य न्यायाधीश के घर न जाकर उनसे कहीं और किसी मीटिंग में मिल लेते । अब कहते हैं कि मनमोहन सिंह की इफ्तार पार्टी में भी तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गये थे । शायद यह भी ठीक नहीं कहा जा सकता । अपना नाम घोषित नहीं करने की शर्त पर अनेक रिटायर्ड जजों का कहना है कि चाहे शिष्टाचारवश ही क्यों न हो जुडिशरी और प्रशासन के मुख्य प्रमुख गैर सार्वजनिक अवसरों पर न मिलें । सुप्रीम कोर्ट में बहुत से मुकदमे केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध भी होते हैं ।असल में आज के प्रधानमंत्री और आज के मुख्य न्यायधीश इतने सच्चे और कर्तव्य परायण हैं कि उन पर शक करना बहुत गलत है और शिष्टाचार के भी विरुद्ध है । फिर भी न्याय कहता है कि न्याय होतेभी दिखलाई पडऩा चाहिए । यदि यह सिद्धांत मान्य हो तो फिर दोनों का मिलना नहीं होना चाहिए । परन्तु चाहे पक्ष हो या विपक्ष ऐसी बातों को हवा देना बिल्कुल ग़लत है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं है कि कोई प्रधानमंत्री या मुख्य न्यायाधीश पर कोई टिप्पणी करें । हम दैनिक अजय भारत इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहना चाहते । केवल कहते हैं कि प्रवक्ताओं को संयम बरतना चाहिए ।




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