रिजर्व बैंक के लिए आगे की राह
- 03-Apr-24 12:00 AM
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सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 90वें वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही कहा कि बैंक ने देश को विकास के मार्ग पर आगे ले जाने में अहम भूमिका निभाई है। दीर्घावधि की आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए वित्तीय स्थिरता एक अनिवार्य शर्त है। इस समय रिजर्व बैंक इस महत्त्वपूर्ण पड़ाव का जश्न मना रहा है और यह उचित अवसर है कि संस्थान न केवल अपनी अतीत की उपलब्धियों को सामने रखे बल्कि भविष्य के लिए अपनी योजनाएं भी प्रस्तुत करे। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वृहद आर्थिक स्थिति और नियामकीय चुनौतियों में निरंतर बदलाव आ रहा है।साफ कहें तो केंद्रीय बैंक बीते दशकों में अपने दायित्वों और कार्यों के साथ निरंतर विकसित हुआ है। समय-समय पर मतभेद के बावजूद सरकार ने इस सफर में रिजर्व बैंक को विधिक और सांस्थानिक सहायता मुहैया कराई है। इन बातों का यह आशय कतई नहीं है कि भारत की व्यवस्थाएं पूरी तरह खामी रहित हैं लेकिन बीते वर्षों में जो विकास हुआ है वह भी सकारात्मक दिशा में है।हाल के वर्षों के सबसे अहम घटनाक्रम में एक रहा है आरबीआई अधिनियम में संशोधन करना ताकि उसे मुद्रास्फीति को लक्षित करने वाले केंद्रीय बैंक में बदला जा सके। विभिन्न धड़ों के विरोध के बावजूद सरकार मौद्रिक नीति ढांचे को मजबूत बनाने के विचार पर सहमत है। इस बात ने मौद्रिक नीति के संचालन को अधिक पारदर्शी बनाया है और निवेशकों के आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद की है।हाल के समय में कुछ भ्रम की स्थिति बनने पर रिजर्व बैंक ने यह दोहरा कर सही किया कि वह मुद्रास्फीति को लक्षित करने के विधिक अधिदेश का पालन करेगा। इसके अलावा वृहद आर्थिक स्थिरता में सुधार की एक वजह रिजर्व बैंक द्वारा बाह्य क्षेत्र का कुशल प्रबंधन भी है। उसने अवसरों का लाभ लेकर बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार खड़ा किया जिसने मौद्रिक अस्थिरता को समाप्त किया।रिजर्व बैंक ने वृहद आर्थिक प्रबंधन को लेकर हाल के वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है। बहरहाल, बैंकिंग नियमन और निगरानी में सुधार की गुंजाइश है। यह अच्छी बात है कि बैंकिंग क्षेत्र में फंसे हुए कर्ज में कमी आई है तथा इस समय यह क्षेत्र तकरीबन एक दशक में सबसे बेहतर स्थिति में है। परंतु यह तथ्य बरकरार है कि बैंकिंग क्षेत्र में वित्तीय संकट के पहले और बाद में रिजर्व बैंक की निगरानी में अतियों की स्थिति बनी। हालांकि यह सही है कि रिजर्व बैंक के पास सरकारी बैंकों के नियमन के मामले में सीमित शक्ति है। इसे जरूरी कानूनी बदलावों की मदद से हल करने की आवश्यकता है।हाल ही में येस बैंक और इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल ओवरसाइट सर्विसेज लिमिटेड जैसे दो उदाहरण बताते हैं कि हमें अपनी निगरानी व्यवस्था में सुधार करने की जरूरत है। विनियमित संस्थाओं से निपटने के मामले में पारदर्शिता को लेकर भी चिंताएं हैं। उदाहरण के लिए नियामक पेटीएम पेमेंट्स बैंक के मामले में आगे बढ़कर सूचनाएं दे सकते थे। बल्कि ऐसी संस्थाओं से निपटना आने वाले वर्षों में एक बड़ी चुनौती बनेगा।भारतीय रिजर्व बैंक ने तकनीक को अपनाने की सुविधा देने के क्षेत्र में अच्छा काम किया है। भारत पेमेंट सॉल्युशंस के मामले में दुनिया में अग्रणी देश है लेकिन उसे नए दौर की फिनटेक कंपनियों द्वारा तकनीक का इस्तेमाल करने से उत्पन्न होने वाले अनचाहे परिणामों से निपटने के लिए भी तैयार रहना होगा। कुछ इस तरह जिससे नवाचार प्रभावित न हो। रिजर्व बैंक ने केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी की दिशा में भी पहल की है, हालांकि यह देखना होगा कि इसे किस हद तक अपनाया जाता है।रिजर्व बैंक औपचारिक रूप से एक स्वतंत्र केंद्रीय बैंक नहीं है। सरकार को उसे स्वायत्त रूप से काम करने देना चाहिए और उसकी सांस्थानिक स्थिति का सम्मान करना चाहिए। उसके कामकाज को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सरकार को जरूरी कानूनी बदलावों पर विचार करना चाहिए ताकि बैंकिंग नियमन में उसे मजबूती दी जा सके। सरकार के लिए यह भी आवश्यक है कि वह राजकोषीय घाटे में कमी लाए ताकि मौद्रिक नीति के संभावित राजकोषीय दबदबे के जोखिम को कम कियाजा सके।
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