रोजगार की जरूरत

  • 24-Jun-24 12:00 AM

डॉ. जयंतीलाल भंडारीयकीनन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई एनडीए गठबंधन सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती नौकरियों और रोजगार अवसरों में वृद्धि करने की है।हाल ही में दुनिया में आर्थिक और रोजगार से संबंधित शोध अध्ययनों के लिए प्रसिद्ध फ्रांस के कॉरपोरेट एंड इन्वेस्टमेंट बैंक नेटिक्सि एसए के द्वारा प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जिस तेजी से युवा रोजगार के लिए तैयार होकर श्रम शक्ति (वर्क फोर्स) में शामिल हो रहे हैं, उसको देखते हुए भारत को 2030 तक प्रति वर्ष 1.65 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी। इसमें से करीब 1.04 करोड़ नौकरियां संगठित सेक्टर में पैदा करनी होगी। जबकि पिछले दशक में सालाना कुल 1.24 करोड़ नौकरियां ही पैदा हो सकी थीं।इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में तेजी को बरकरार रखने के लिए सर्विसेज से लेकर मैन्युफैक्चरिंग तक सभी सेक्टर्स को नई रफ्तार से बढ़ावा देना होगा। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार वर्ष 2022 में भारत की कुल बेरोजगार आबादी में से 83 फीसद बेरोजगार युवा थे। र्वल्ड बैंक के मुताबिक, भारत की कुल श्रम शक्ति की भागीदारी दर मात्र 58 प्रतिशत है, जो भारत के एशियाई समकक्ष देशों की तुलना में बहुत कम है। निसंदेह नई गठबंधन सरकार को बेरोजगारी संबंधी चिंताजनक नए आंकड़ों को ध्यान में रखना होगा। हाल ही पिछले दस वर्षो में संघ लोक सेवा आयोग रेलवे भर्ती और कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने जो भर्तियां की हैं, वे रिक्त पदों की तुलना में कम बहुत है।राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) के द्वारा जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) आंकड़ों के अनुसार भारत के शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च 2024) में बढ़कर 6.7 प्रतिशत हो गई है, जो इसके पहले की तिमाही में 6.5 प्रतिशत थी। शहरी बेरोजगारी पिछली चार तिमाही के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। 15 साल से अधिक उम्र में बेरोजगारी की दर जनवरी-मार्च 2023 की तिमाही के 6.8 प्रतिशत के बाद सर्वाधिक है।सर्वेक्षण के अनुसार युवा बेरोजगारी स्तर बढ़ा है और यह बीती तिमाही के 16.5 प्रतिशत से बढ़कर चौथी तिमाही में 17 प्रतिशत हो गया। यह आंकड़ा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस आयु वर्ग के लोग पहली बार श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं। इससे शहरी रोजगार के बाजार में गिरावट का पता चलता है। अब नई सरकार के द्वारा देश में असंगठित सेक्टर लघु एवं मध्यम उद्योगों और गिग वर्कर्स की चिंताओं पर भी ध्यान दिया जाना होगा। इन सेक्टरों में करोड़ों लोगों को रोजगार तो मिल रहा है, लेकिन भविष्य एकदम सुरक्षित नहीं है। जून 2022 में प्रस्तुत नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के 77 लाख लोग इस समय गिग इकोनॉमी का हिस्सा हैं। अनुमान है कि 2029-30 तक इनकी संख्या 2.35 करोड़ हो जाएगी।गिग वर्कर्स के लिए बड़ी समस्या नौकरी जाने का खतरा और प्रोविडेंट फंड, हेल्थ इंश्योरेंस और सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलना है। देश में रोजगार के मद्देनजर महिलाओं की स्थिति भी अच्छी नहीं है। नैसकॉम के मुताबिक भारत के प्रौद्योगिकी कार्यबल में केवल 36 फीसद महिलाएं हैं। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदों में महिलाओं की भागीदारी केवल 14 फीसद है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्र में महिलाओं का रोजगार कम है और भारत के बड़े अवसरों के लिए महिलाओं की कम भागीदारी चुनौतीपूर्ण है। निश्चित रूप से नई गठबंधन सरकार को देश की नई पीढ़ी को जॉब सीकर यानी नौकरी की चाह रखने वाले से ज्यादा नए दौर के जॉब गिवर यानी नौकरी देने वाले बनाने की तेज रणनीति के साथ भी आगे बढऩा होगा। पिछले 10 वर्षो में जिस तरह नई पीढ़ी के द्वारा स्वरोजगार के मौके मु_ी में लिए जा रहे हैं।उनकी रफ्तार बढ़ाई जानी होगी। हाल ही में शोध संस्थान स्कॉच की एक रिपोर्ट में कहा गया कि मोदी सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल में 51.40 करोड़ रोजगार मिले हैं। इस शोध अध्ययन में रोजगार व स्वरोजगार से संबंधित 12 केंद्रीय योजनाओं को शामिल किया गया है। इनमें मनरेगा, पीएमजीएसवाई, पीएमईजीपी, पीएमए-जी, पीएलआई, पीएमएवाई-यू, और पीएम स्वनिधि जैसी प्रमुख योजनाएं शामिल हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत 10 वर्षो में आििर्टफशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी नई स्किल्स से नई पीढ़ी को सुसज्जित करके उनके लिए रोजगार के मौके बढ़ाए हैं।अब तीसरे कार्यकाल में देश में वैश्विक क्षमता केंद्रों की (जीसीसी) स्थापनाओं की रफ्तार तेजी से बढ़ाकर नए तकनीकी कौशल वाले युवाओं के लिए रोजगार के अधिक मौके सृजित करने की डगर पर आगे बढ़ा जाना होगा। चूंकि कई विकसित और विकासशील देशों में तेजी से बूढ़ी होती आबादी के कारण उद्योग-कारोबार व सर्विस सेक्टर के विभिन्न कामों के लिए युवा हाथों की कमी हो गई तथा श्रम लागत बढऩे से ये देश कार्यबल संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में भारत को इस मौके को भुनाते हुए तेजी से आगे बढऩा होगा। सरकार ने 2023 तक भारतीय श्रमिक उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न देशों के साथ 13 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। नई गठबंधन सरकार को ऐसे समझौतों को अब और बढ़ाने की रणनीति के साथ आगे बढऩा होगा।हम उम्मीद करें कि प्रधानमंत्री मोदी की नई सरकार के द्वारा उनके विकास के एजेंडे में शामिल अधिक रोजगार के मुद्दे को प्राथमिकता के साथ ध्यान में रखा जाएगा। हम उम्मीद करें कि नई सरकार नई सरकारी नौकरियों के सृजन पर पूर्णरूपेण ध्यान देते हुए लघु-मध्यम उद्योग और असंगठित क्षेत्र में रोजगार की जरूरतों पर ध्यान देगी। साथ ही उम्मीद करें कि मोदी सरकार के श्रम और रोजगार मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया और कौशल विकास व उद्यमिता राज्य मंत्री जयंत चौधरी 142 करोड़ से अधिक आबादी के साथ दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाले भारत में दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी को नए उच्च गुणवत्ता वाले कौशल से सुसज्जित करके उनके चेहरों पर रोजगार की मुस्कुराहट देने के साथ देश की आर्थिक तस्वीर संवारने की संभावनाओं को साकार करने के लिए नई कारगर रणनीतियों के साथ आगे बढ़ेंगे।




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