लोक का तंत्र अभी जीवित है

  • 08-Jun-24 12:00 AM

रजनीश कपूरजहां नई लोकसभा के गठन का सवाल है तो इसको ले कर, पक्ष- विपक्ष के मायने में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि न तुम जीते न वो हारेÓ।इंडियाÓ गठबंधन पर जिस तरह देश के मतदाताओं ने भरोसा जताया है उससे यही सिद्ध हुआ है कि देश में लोकÓ का तंत्रÓ अभी जीवित है। अब सरकार भले एनडीए गठबंधन की बने लेकिन देश की संसद में विपक्ष को अच्छी संख्या में स्थान मिलेगा।सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को चौंकाया है। सत्तापक्ष के बड़े-बड़े दावे और उसी से मिलते-जुलते एग्जिट पोल के बाद किसी को ऐसे नतीजोंकी उम्मीद नहीं थी। हालाँकि इंडियाÓ गठबंधन के नेताओं के अलावा एक दो ज्योतिषियों ने टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल को सिरे से नकार दिया था। पर इंडियाÓ गठबंधन पर जिस तरह देश के मतदाताओं ने भरोसा जताया है उससे यही सिद्ध हुआ है कि देश में लोकÓ का तंत्रÓ अभी जीवित है। अब सरकार भले एनडीए गठबंधन की बने लेकिन देश की संसद में विपक्ष को अच्छी संख्या में स्थान मिलेगा। जो भी सरकार बनाएगा अब उसे विपक्ष के दबाव में रह कर कार्य करने पड़ेंगे। एक स्वस्थ लोकतंत्र में मज़बूत विपक्ष का होना जरूरी है। इसलिए 2024 का चुनाव सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही अच्छा साबित हुआ।चुनावों के दौरान जिस तरह इंडियाÓ गठबंधन ने चुनाव आयोग की मशीनरी पर कई सवाल उठाएथे उससे आम जनता के मन में भ्रम पैदा होना शुरू हो गया था। लेकिन लोकसभा नतीजों ने एक बार फिर से यह विश्वास जगाया है कि चुनावों में मतदाता ही सर्वोपरि होते हैं। इस बार के चुनावों में किसी भी दल या नेता की, किसी भी तरह की, कोई लहर नहीं थी। ये चुनाव जनता का चुनाव था। देश भर में फैल रही महंगाई, बेरोजग़ारी व अन्य परेशानियों से मतदाता त्रस्त थे। इसलिए उसे जो जंचा उसी को उसने वोट दिया। आखऱिी चरण के मतदान के बाद से जो भी एग्जिट पोल आए वो भी एनडीए की ही सरकार बना रहे थे। परंतु एग्जिट पोल केवल पोल-पट्टी साबित हुए।चुनाव परिणाम के बाद एग्जिट पोल करने वाली एक संस्था के अध्यक्ष जिस तरह एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर फूट-फूट कर रोने लगे उससे तो लगा कि उन्हें अपनी करनी पर पछतावा है। पर कई बार जो सामने दिखाई देता है वो असल में सच नहीं होता। उसके पीछे का सच कुछ और होता है। इन सज्जन के विषय में आज ऐसी शंका देश भर में जताई जा रही है। इसका एक कारण यह है कि बिना सर्वेक्षण तकनीकी की बारीकी बताए, बिना सैंपल साइज बताए, बिना प्रश्नावली के प्रश्न बताए, केवल अपना आँकलन प्रचारित कर देना अनैतिक होता है।सोचने वाली बात है कि जो भी संस्था एग्जिट पोल करती है उसे यह बताने में क्यों गुरेज़ होना चाहिए कि उसने एग्जिट पोल करने की मानक प्रक्रिया को अपनाया या नहीं? ऐसा तो नहीं है कि ये एग्जिट पोल निहित स्वार्थों के किसी एजेंडा के तहत किए गए? क्या ऐसे सर्वे कराने में किसी मीडिया संस्थान की भी संदिग्ध भूमिका रही?मिसाल के तौर पर जिस तरह 2024 के लोकसभा चुनावों के एग्जिट पोल दिखाए गए थे और उसकी प्रतिक्रिया में देश के शेयर मार्केट में एकदम से भारी उछाल आया,लोगों ने विश्वास करके बाज़ार में निवेश कर डाला. वह उनके साथ ठगी थी। नतीजों के रुझान आने पर शेयर मार्केट बुरी तरह लुढ़का और आम निवेशकों के करोड़ों रुपये स्वाहा हो गये। इससे लगता है कि एकतरफ़ा नतीजे को प्रचारित करके किसी विशेष उद्देश्य से ही एग्जिट पोल को इतना प्रचारित किया गया।नतीजतन अब जब कोई भी संस्था ईमानदारी से भी एग्जिट पोल या सर्वे करेगी तो उस पर भी संदेह किया जाएगा। शायद गुमराह करने वाले एग्जिट पोल और उसी का प्रचार करने वाले पक्षपाती मीडिया संस्थानों को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि नतीजे उनके सर्वेक्षण के विपरीत भी आ सकते हैं। यदि उन्हें ये मालूम था और इस सबके बावजूद एग्जिट पोल वाली संस्था ने ऐसा एग्जिट पोल राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर परोसा तो वह संस्था व चैनल देश की जनता साथ धोखाधड़ी करने के दोषी हैं। जिसकी जाँच की जानी चाहिए।दरअसल जब तक सर्वे करने वाली संस्थाएँ अपनी वेबसाइट व अन्य प्रचार सामग्री पर इस बात को पूरी तरह से प्रकाशित न करें कि उस संस्था का किसी भी राजनैतिक दल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है या अपनी तकनीकी का खुलासा न करें, तब तक उस संस्था द्वारा किए गये एग्जिट पोल को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। परंतु हमारे देश में जिस तरह से एग्जिट पोल की भेड़-चाल होती है, वह महज धोखा और टाइमपास है।बहरहाल2024 का चुनाव भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अपनी जगह बना चुका है। एक ओर जहां एनडीए का अबकी बार 400 पारÓ का नारा विफल हुआ है, वहीं विपक्षी एकता का इंडियाÓ गठबंधन भी कई बार बिगड़ते-बिगड़ते मज़बूती से उभर कर आया। विपक्षी दल हों या सत्तापक्षी दल, सभी ने जनता के सामने बड़े-बड़े वादे किए हैं और उनको पूरा करने का प्रण भी किया है। तो उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में वे अपने वायदों को पूरा करेंगे, उन्हें जुमलाÓ कह कर अपनी जि़म्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ेंगे। जहां तक नई लोकसभा के गठन का सवाल है तो इसको ले कर, पक्ष- विपक्ष के मायने में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि न तुम जीते न वो हारेÓ।




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment