श्रापित गर्भ

  • 19-Apr-25 12:00 AM

अभिलाषा श्रीवास्तव

अक्सर घरों में किसी के निधन के बाद उसकीं पुण्यतिथि मनाई जाती हैं और सार्मथ्य अनुसार दान-पुण्य किया जाता हैं ताकि आत्मा को शांति मिलेमगर हर तबका मे एक मृत्यु के बाद ना तो पुण्यतिथि मनाई जाती हैं न ही आंशू बहाई जाती हैंऔर ना ही दान पुण्य होता है क्योंकि मृतक माँ के कोख में ही दम तोड़ देतीं हैंबात कड़वी हैं लेकिन 100त्न सही हैजी हाँ मैं बात कर रहीं हूँ माँ के उस गर्भ की जो पुत्र मोह के लिए पुत्री के हत्या से रंग जातें हैंकहते है कंस अपनी बहन के बच्चों का हत्या जन्म के बाद कारागार में करता रहा क्योंकि उसे डर था अपने प्राणों कीमगर माँ के गर्भ गृह में मारने वाला कंस कौन हैंवह भी अपने अबोध अंश काउसे किसी का डर नहींबस पुत्र रत्न प्राप्ति की अभिलाषा और यही से शुरू होने लगता हैपाप-पुण्य का वह खेल जो मानव रुपी पिता से वह अपराध करवाने लगता है जो ना चाह कर भी माता पिता कर बेठते हैखैर मेरा काम था लिखनाक्योंकि गीता -कुरान बाकी धार्मिक किताबों में केवल लिखा गया है बाकी तो सभी समझदार हैं हीअपने आंगन के नन्ही दूब को फैलने देकोई फर्क नहीं पड़ता समाज को की आपके घर बेटा है या बेटीउन्हें अपने हाथों से कुचलने की चेष्टा ना करेंसृष्टि हैं तभी शिव हैं वरना पत्थरों पे फूल खिलते नहींअजन्मा- भ्रूण हत्याव्यक्तिगत सोच हैं, मजबूरी नहींफिर खुद के हाथोंअपने उस कलीं को कैसे कुचल सकते है जिसके अंदर हमारा रक्त यहा तक की धडकन भी साथ साथ धड़क रहा हो और वह नन्ही सी जान हाथों में आने के लिए पल- पल प्रतिक्षा कर रही होमाँ तो मिट्टी से बनी हुई दुर्गा की वह प्रतिमा होती हैं जिसका स्वभाव ही मातृत्व फिर अपने कोख का रक्षा करने में असर्मथ कैसे हो सकती हैं क्योंकि पुरुष के साथ साथ वंश की चाहत प्रंचड हावी स्त्री मन में भी होता हैऔर अंधकार में छोटी सी पवित्र दिप अपनी अस्तित्व खो देतीं हैंअगर स्त्री स्वयं के भ्रूण हत्या को होने से नहीं बचा सकती तो उसे फिर माँ कहलाने का हक कैसामाँ तो जननी होतीं हैंउसके लिए पुत्र और पुत्री का क्या भेद




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