सामयिक : जरूरी है अब विश्व संसद

  • 03-Apr-24 12:00 AM

रघु ठाकुरडॉक्टर लोहिया का सारा जीवन संघर्ष का और मौलिक विचारों को देने का इतिहास है। जर्मनी से पढ़कर आने के बाद वे महात्मा गांधी की अगुवाई में आजादी के आंदोलन में शामिल हुए और 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद डॉक्टर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने ही भूमिगत रहकर आंदोलन की कमान संभाली थी और लगातार लगभग ढाई वर्ष अपनी गिरफ्तारी होने तक देश की जनता और नौजवानों को आंदोलन के लिए प्रेरित करते रहे।डॉक्टर लोहिया एक मौलिक विचारक थे, जिन्होंने अपने जीवन के कालखंड के बहुत आगे का विचार किया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके आजादी के आंदोलन और समाजवादी आंदोलन के सहकर्मी लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि लोहिया बहुत आगे तक का सोचते थे इसलिए कई बार देश के लोग उन्हें समझ नहीं सके। लोहिया स्वत: भी जानते थे कि वे जो विचार दे रहे हैं वह 50 से 100 वर्ष बाद के लिए हैं और उन्हें विश्वास था कि भले ही उस समय का समाज उनके विचारों को समझ ना पा रहा हो परंतु किसी-न-किसी दिन समझेगा जरूर और इसलिए उन्होंने खुद यह कहा था कि लोग मेरी बात सुनेंगे शायद मेरे मरने के बाद पर सुनेंगे जरूर। 12 अक्टूबर 1967 को 57 वर्ष की अल्पायु में उनके निधन के आज लगभग 67 वर्षो के बाद लोहिया के विचारों की गूंज फिर सुनाई पडऩे लगी है। बौद्धिक जगत विविद्यालय में और दुनिया भर के विभिन्न देशों में लोहिया की चर्चा हो रही है। लोहिया शताब्दी वर्ष में भारत में व दुनिया के अनेक देशों के विविद्यालय में लोहिया साहित्य और विचारों पर चर्चा हुई है।डॉक्टर लोहिया ने अपने जीवन काल में सात क्रांतियां को दुनिया में परिवर्तन के लिए जरूरी बताया था। उन्हें सप्त क्रांतिÓ कहा जाता है। इन सप्त क्रांतियों में दुनिया में प्रचलित सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त करने का लक्ष्य था। आर्थिक सामाजिक, राजनीतिक असमानता, रंगभेद की समाप्ति, निशस्त्रीकरण, लैंगिक असमानता युद्ध की समाप्ति आदि इसमें शामिल थे। लोहिया अपने आप को विश्व नागरिक मानते थे और चाहते थे कि समूची दुनिया के 18 वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों द्वारा निर्वाचित विश्व संसद बने। आज दुनिया इन समस्याओं से जूझ रही है। इन सब का हल विश्व संसद ही हो सकता है। आज की दुनिया में सीमांत आतंकवाद, धार्मिंक आतंकवाद, नक्सली आतंकवाद जैसे अनेकों आतंकवादों से दुनिया प्रभावित है।रूस-यूक्रेन युद्ध को लगभग दो वर्ष होने को हैं। इस्रइल ने हमास को नष्ट करने के उद्देश्य से लगभग पूरी गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया है। अमेरिका ईरान के बीच छ्द्म युद्ध चल रहा है, किसी भी दिन खुलकर युद्ध में तब्दील हो सकता है इसकी आशंका बनी हुई है। भारत अफगानिस्तान के बीच पाक अधिकृत कश्मीर समस्या है। 1959 से तिब्बत पर चीन का कब्जा है। दलाई लामा व उनके हजारों अन्य निर्वासित होकर जीवन बिता रहे। भारत की हजारों किलोमीटर भूमि पर चीन का कब्जा है। ऐसे ही दुनिया में सीमा विवाद युद्ध के लिए तनाव के कारण बने हुए हैं। न्यूयॉर्क के र्वल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अफगानिस्तान की तबाही छिपी हुई नहीं है।समूची दुनिया में घुसपैठ की समस्या बढ़ रही है, जो कि भयावह तनाव व हिंसा का कारण बन रही है। पोलैंड की सीमा से हजारों लोग अमेरिका की सीमा में प्रवेश के लिए बर्फ में पड़े मर रहे हैं। वे अमेरिका में बसना चाहते हैं, परन्तु अमेरिका बसाने की स्थिति में नहीं है। म्यांमार से रोहिंग्या को पलायन के लिए विवश किया जा रहा है। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। यह बड़ी समस्या है। इन सब का हल डॉ. लोहिया की विश्व सांसद के बनने से ही निकाल सकता है।हम संयुक्त राष्ट्र से अपील करेंगे लोहिया के जन्मदिन 23 मार्च को विश्व सांसद दिवसÓ घोषित करे। हम प्रधानमंत्री जी से भी अनुरोध करेंगे कि लोहिया की विश्व संसद की कल्पना भारत के प्राचीन सिद्धांत व संस्कृति को नया आयाम दे सकती है। अगर एक दुनिया बनेगी तो नेक दुनिया बनेगी। डॉक्टर लोहिया ने जुलाई 1950 में एक लेख लिखा था- तीसरा खेमा विश्व परिप्रेक्ष्य में। दरअसल, लोहिया ने 1947 से ही विश्व संसद की चर्चा शुरू कर दी थी और दुनिया में जहां-जहां भी उनके संपर्क के लोग थे उनके साथ विश्व संसद की कल्पना पर काम करने के लिए वह पहल करने लगे थे। उनका यह लेख भी उसी का एक हिस्सा है, उसे लेकर कुछ अंश मैं यहां दे रहा हूं।भारत की 6000 साल और उससे भी अधिक पुरानी संस्कृति में कुछ बात तो है जो और संस्कृतियों और धर्म की रही, लेकिन जिसे यहां अधिक पूर्णता मिली। विवेक के प्रकाश में सहानुभूति का कोमल ज्ञान तब तक अधूरा है, जब तक सारे विश्व और उसकी प्रत्येक वस्तु के साथ तादात्म्य का अनुभव न हो। मैं नहीं जानता कि सहानुभूति की इस भावना को समाजवाद और वर्ग संघर्ष से कैसे जोड़ा जाए। विश्व सरकार का आंदोलन प्रगति पर है निश्चय ही इसमें कई धुंधलके और दरारें हैं, लेकिन इसका मुख्य विचार की सारे विश्व के लिए एक सर्वोच्च संस्था हो; लोगों के दिलों में जगह बना रहा है।कुछ लोगों को विश्व सरकार का विचार आज यथार्थ और अव्यावहारिक लगता है। इसके बजाए वे क्षेत्रीय एकता के लिए काम करना बेहतर मानते हैं, जैसे पश्चिमी यूरोप की सरकार, एशिया की सरकार आदि। इसके साथ ही कई लोगों का विचार है कि एक आर्थिक विश्व के बिना एक राजनीतिक विश्व असंभव है, जबकि कुछ लोग विश्व सरकार को शुद्ध राजनीतिक स्तर तक ही रखना चाहते हैं। विश्व संघीय सरकार के लिए विश्व आंदोलन एक संगठन है, जिसका उद्देश्य है विश्व सरकार के लिए काम करने वाले सभी ग्रुपों और शक्तियों को इक_ा करना। इसका काम आसान नहीं है। कमजोरी और फूट इसके दो दोष हैं।लोहिया के लेख के यह अंश बताते हैं कि 1950 से ही समाजवादी आंदोलन ने लोहिया के मार्गदर्शन में विश्व संसद व सरकार बनाने के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था, यहां तक की भारत में ही लोहिया की पहल पर विश्व नागरिकता का रजिस्टर तैयार करने का काम शुरू हुआ था। वह लोहिया की मृत्यु के बाद शिथिल हो गया। संयुक्त राष्ट्रसंघ अगर 23 मार्च को विश्व संसद दिवस घोषित करेगा तो समूची दुनिया में फिर से लोहिया का यह विचार तेजी से जन संवाद व जन विमर्श का केंद्र बनेगा और दुनिया विश्व संसद के बारे में सोचने व आगे बढ़ाने को प्रेरित होगी।




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