सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत
- 29-May-24 12:00 AM
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सतीश सिंहभले ही भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और तेजी से दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है, लेकिन अभी तक भारत में गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पर्याप्त विकल्प एवं अवसर उपलब्ध नहीं हैं।यही वजह है कि यहां के छात्र विदेश पढऩे जाते हैं। हालांकि ये छात्र वहां पढ़ाई के क्षेत्र में दुारियों से ज्यादा अपनी जान को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। दरअसल, कई मुल्कों में भारतीय छात्रों पर जानलेवा हमले की संख्या बढ़ी है।बहरहाल, आज देशभर में 1000 से अधिक विविद्यालय और 42,000 से अधिक कॉलेज उच्च शिक्षा प्रदान करने का काम कर रहे हैं, लेकिन इनके पास अभी भी पर्याप्त पूंजी, कुशल शिक्षक और आधारभूत संरचना की कमी है। भारत का कोई कॉलेज या विविद्यालय आज भी दुनिया में शीर्ष 10 स्थानों पर काबिज नहीं है। भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर सुधार के बावजूद सबसे बड़ी चुनौती है छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना, जिसे बुनियादी सुविधाओं, कुशल शिक्षक और पूंजी उपलब्ध कराकर प्रदान किया जा सकता है। विदेश में बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा शिक्षा ग्रहण के कारण भारत से पूंजी का बहाव विदेशों में हो रहा है और साथ में प्रतिभा का पलायन भी हो रहा है। विदेश मंत्रालय के अनुसार जनवरी 2023 तक 15 लाख भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई कर रहे थे, जबकि 2022 में यह संख्या 13 लाख थी और 2024 में इस संख्या के 24 लाख पहुंचने की संभावना है।2020 से 2021 के दौरान विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संख्या में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों से ज्यादा बच्चे विदेश में शिक्षा ग्रहण करने जा रहे हैं, जिसका कारण सामाजिक स्टेटस सिंबल और विदेश में रहने की ललक है। विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों में से 20 प्रतिशत छात्र ही अपनी पढ़ाई पूरी करके विदेश से भारत वापिस लौटना चाहते हैं, जबकि 80 प्रतिशत छात्र वहीं बसना चाहते हैं। विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों में 35 प्रतिशत छात्र अमेरिका में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।आज अमेरिका के शिक्षण संस्थानों में हर 4 छात्रों में से 1 छात्र भारतीय मूल का है। 2024 में ये छात्र विदेशों में 75 से 85 अरब डॉलर रुपए खर्च कर सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में विदेशी मुद्रा में 5 अरब रुपए खर्च किए गए। कोरोना महामारी के शुरू होने से पहले विदेशों में अध्ययनरत छात्र विदेश की अर्थव्यवस्थाओं में 24 बिलियन डॉलर का व्यय किए थे, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1 प्रतिशत था। 2024 में इस राशि के बढ़कर 80 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। अगर भारतीय छात्र विदेश पढ़ाई करने नहीं जाते तो विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल आयात की जरूरत को पूरी करने में किया जाता, देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती, अर्थव्यवस्था में मजबूती आती, देश की शिक्षा व्यवस्था मजबूत होती, देश की प्रतिभा का इस्तेमाल देश में किया जाता आदि।आंकड़ों के अनुसार चीन के बाद भारत से सबसे अधिक छात्र विदेश पढऩे जाते हैं। भारतीय छात्र उच्च शिक्षा जैसे, मेडिकल, इंजीनियरिंग, व्यवसाय प्रबंधन में डिग्री एवं डिप्लोमा हासिल करने के लिए चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, यूक्रेन, रूस, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका आदि देश जा रहे हैं। मेडिकल की डिग्री हासिल करने के लिए भारतीय छात्र लगभग 3 दशकों से रूस, चीन, यूक्रेन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, फिलीपींस आदि देश जा रहे हैं, क्योंकि भारत में मेडिकल सीट कम होने की वजह से यहां मेडिकल की पढ़ाई बहुत ही महंगी है।राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में देशभर में महज 596 मेडिकल कॉलेज थे, जहां कुल मेडिकल सीटों की संख्या महज 88,120 थी। हालांकि, इंजीनियरिंग की पढाई करने के लिए विदेश जाने के दृष्टान्त कम हैं। गाहे-बगाहे बीते कई वर्षो से विदेशों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की हत्या और उनके साथ भेदभाव व्यवहार किया जा रहा है, लेकिन कोरोना महामारी और रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद विदेश में अध्ययनरत छात्रों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिंता महसूस की गई, क्योंकि इस अवधि में अनेक देशों में हजारों छात्र कोरोना महामारी के शिकार बने। वहीं, महामारी के दौरान आस्ट्रेलिया के शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के लिए वहां की सरकार ने देश की सीमाएं भी बंद कर दी थी।इससे इतर, रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण युद्ध के शुरु आती दौर में यूक्रेन में 20,000 से अधिक छात्र फंस गए थे। कुछ महीने पहले भी कनाडा में कुछ कॉलेज के बंद होने के कारण सैकड़ों भारतीय छात्र प्रभावित हुए। पिछले दिनों किर्गीस्तान की राजधानी बिशकेक में कुछ भारतीय छात्रों पर जानलेवा हमला हुआ। फरवरी 2024 में अमेरिका के सेंट लुईस स्थित वाशिंगटन विविद्यालय के छात्र अमरनाथ घोष की हत्या कर दी गई। विदेश मंत्रालय के अनुसार 2018 से अब तक विदेशों में पढ़ रहे 400 से अधिक छात्रों की मौत हो चुकी है, जिनमें कुछ प्राकृतिक मौत थी तो कुछ हत्या। छात्रों की सबसे अधिक मौत कनाडा में हुई है। भारतीय छात्रों की विदेश में की जा रही हत्या या उनपर किए जा रहे जानलेवा हमले या नस्लीय टिपण्णी या भेदभाव की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार को अंतरराष्ट्रीय संधि की संख्या बढ़ानी चाहिए। सरकारी मेडिकल व इंजीनियरिंग कालेजों में सीटों की संख्या बढ़ानी चाहिए। छात्र बीमा योजना शुरू किया जाना चाहिए। इसके अलावा, शिक्षा के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर सुधार एवं ज्यादा से ज्यादा निवेश, नवोन्मेष और अनुसंधान को बढ़ावा, देश में रोजगार की बेहतर स्थिति, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, देश में सुशासन और हर स्तर पर सिस्टम को पारदर्शी बनाने की जरूरत है। कभी पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेश में पढ़ रहे भारतीय छात्रों को देश का ब्रांड एंबेसडर कहा था और इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने वहां पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों को दोनों देशों के बीच का जीवंत सेतु माना था, लेकिन आज इन भारतीय छात्रों की जान वैिक स्तर पर सांसत में फंसी हुई है। अस्तु, मामले में सरकार द्वारा सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है।
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