हर फिक्र को धुएं में उड़ाता
- 26-Apr-24 12:00 AM
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रजनीश कपूरसाल 1961 की बहुचर्चित फिल्म हम दोनोंÓ का गाना हर फिक्र को धुएं में उड़ाताÓ सबने सुना होगा। धूम्रपान करने वालों ने भी इसे अवश्य सुना होगा।फिल्म में गाने के बोल इस तरह दर्शाए गए कि फिल्म का हीरो अपने सभी फिक्र और चिंताओं को धुएं के कश में उड़ा देता है और चिंता मुक्त हो जाता है, परंतु क्या यह सही है कि मात्र सिगरेट के कश भरने और धुआं उड़ाने से आपकी चिंताएं खत्म हो जाएंगी? इसका उत्तर है नहीं। बल्कि यदि आपको धूम्रपान की लत लग जाए तो आपकी स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ जरूर जाएंगी।आज जानते हैं कि ऐसा क्या है, इस चंद लम्हे की मामूली सी खुशी में, जो लाखों करोड़ों को इसकी लत लगा देती है। दरअसल, सिगरेट में मौजूद तंबाकू में निकोटीन पाया जाता है जो कश लेते ही बड़ी तेजी से आपके फेफड़े में समा जाता है और कुछ ही क्षण में दिमाग तक पहुंच जाता है।दिमाग में पहुंचते ही इसका संपर्क नर्व सेलÓ से होता है और इसके असर से डोपामाइन नाम का रसायन बाहर आता है। यह रसायन आपके दिमाग को संकेत देता है कि कुछ अच्छा करने से आपको इनाम मिल सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो, यह रसायन आपको ऐसा इशारा देता है कि आप एक बार दोबारा सिगरेट का कश भर लेते हैं। एक शोध के अनुसार सिगरेट की लत से प्रभावित लोगों, जिन्हें गले का कैंसर हुआ था, की गले की नली को काट कर अलग करना पड़ा। उपचार के बाद भी इस लत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और वे दोबारा धूम्रपान करने को मजबूर थे। विशेषज्ञों के अनुसार दिमाग के जिस हिस्से को एनिमल पार्टÓ कहा जाता है, उससे ही निकोटीन की लत पर काबू पाया जा सकता है। नशीले पदार्थ हमारे दिमाग के एनिमल पार्टÓ को इस कदर उकसाते हैं कि वो ऐसे संदेश भेजता है कि हम ऐसा बार-बार करें। वहीं दिमाग का दूसरा हिस्सा हमें ऐसा करने से रोकता भी है। नशे की लत की गिरफ्त में लोग अक्सर इस संघर्ष से जूझते रहते हैं।इस लत का इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि आप कितने समझदार हैं, बल्कि आपका दिमाग निकोटीन या अन्य नशीले पदाथरे पर किस तरह प्रतिक्रिया देता है। यदि समय रहते और सही संगति के चलते नशा या धूम्रपान रोक दिया जाए तो बेहतर हो परंतु ऐसा बहुत कम होता है। सिगरेट की लत के लिए केवल निकोटीन ही जिम्मेदार नहीं होती। इसके लिए एक प्रमुख भूमिका सिगरेट बनाने वाली कंपनियों और उनके द्वारा जारी किए भ्रामक विज्ञापन भी उतने ही जिम्मेदार हैं। पश्चिमी देशों में जैसे ही निकोटीन की लत को लेकर सवाल उठने लगे तो कुछ लोगों ने इसकी जड़ तक जाने की सोची।उन्होंने वैज्ञानिक तरीकों से साबित कर दिया कि सिगरेट के धुएं में कुछ भी लाभदायक नहीं होता। इतना ही नहीं, यह न केवल धूम्रपान करने वाले, बल्कि उसके आस-पास के लोगों के लिए भी काफी हानिकारक साबित हो सकता है। जैसे-जैसे यह अभियान तेजी पकडऩे लगा, धूम्रपान पर सार्वजनिक जगहों पर प्रतिबंध भी लगने लगा। सिगरेट पर अतिरिक्त और बढ़े हुए कर भी लगाए जाने लगे जिससे इसकी कीमत में भी बढ़ोतरी हुई। साथ ही, सिगरेट के डब्बों पर भी स्वास्थ्य संबंधित चेतावनियां भी छापी जाने लगीं परंतु इन सबके चलते भी पश्चिमी देशों की बड़ी-बड़ी सिगरेट कंपनियों ने हार नहीं मानी। ज्यादा मुनाफा कमाने की नीयत से इन कंपनियों ने विकासशील देशों और उन देशों का रु ख करना शुरू कर दिया जहां नियम और कानून सख्त नहीं थे।इन देशों में आम नागरिक धीरे-धीरे इन कंपनियों की मार्केटिंग के मायाजाल में बड़ी आसानी से फंस गए। देखते ही देखते इन कंपनियों की फिर से चांदी होने लगी। सोचने वाली बात यह है कि लोग धूम्रपान के आदी कैसे बन जाते हैं? कुछ लोग सिगरेट पीने को स्टेटस सिंबलÓ या सामाजिक स्थिति का संकेतक मानते हैं। समझते हैं कि धूम्रपान करना ऐसी आदत है जो किसी विशेष वर्ग में आपको बड़ी आसानी से स्थान देती है, परंतु इस स्थान पाने की होड़ में आप अपनी सेहत से खिलवाड़ कर लेते हैं।इस लत के चलते न सिर्फ आप अपनी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं, परंतु अपने घरेलू बजट का भी नुकसान कर रहे हैं। ज्यों-ज्यों आपकी यह लत बढ़ती जाएगी आपकी जेब पर भार भी बढ़ेगा। धूम्रपान करने से मिलने वाला आंशिक सुकूनÓ बड़ी मात्रा में आपके स्वास्थ्य पर असर करता है, और यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसलिए आप जब भी धूम्रपान करते किसी व्यक्ति को देखें या स्वयं अगला कश लगाने लगें तो यह सवाल अवश्य पूछें कि क्या वास्तव में धूम्रपान करने से फिक्र धुएं में उड़ रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं फिक्र उडऩे की बजाय और बढ़ रहे हों?
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