(बोकारो)1 जनवरी को काला दिवस के रूप में मनाते हैं आदिवासी समाज

  • 01-Jan-24 12:00 AM

1 जनवरी 1948 खरसावां गोलीकांड के शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि बोकारो 1 जनवरी (आरएनएस)। 1 जनवरी 1948 खरसावां गोलीकांड के शहीदों को आदिवासी समाज के द्वारा सेक्टर 12 बिरसा बासा स्थित बिरसा मुंडा-भीमराव अंबेडकर प्रतिमा स्थल पर श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता रेंगो बिरूवा व संचालन झरीलाल पात्रा ने किया। मौके पर आदिवासी समाज के लोगों ने अपने वीर शहीदों को ससन बिड दिरी का प्रतीक फोटो पर फूल माला, दीप प्रज्वलित और दिरी दुल सुनुम (तेल डालकर) करके पारंपरिक तरीके से सुमन श्रद्धा अर्पित कर उनकी कुर्बानी को याद किया। इसके पूर्व दियूरी गंगाधर पूर्ती ने आदिवासी रितिरिवाज से पूजा अर्चना किया। बताते चले कि आदिवासी समाज प्रत्येक वर्ष एक जनवरी को काला दिवस के रूप में मनाते है। संबोधित करते हुए समाजसेवी योगो पूर्ती ने बताया कि भारत की आजादी के करीब पांच महीने बाद जब देश एक जनवरी, 1948 को आजादी के साथ-साथ नए साल का जश्न मना रहा था तब खरसावां आजाद भारत के जलियांवाला बाग कांड का गवाह बन रहा था। उस दिन साप्ताहिक हाट का दिन था। उड़ीसा सरकार ने पूरे इलाके को पुलिस छावनी में बदल दिया था। खरसावां हाट में करीब पचास हजार आदिवासियों की भीड़ पर ओडिसा मिलिट्री पुलिस गोली चला रही थी। आजाद भारत का यह पहला बड़ा गोलीकांड माना जाता है। श्री पूर्ती ने आगे कहा कि उस समय झारखंड अलग राज्य की मांग उफान पर था। सरायकेला-खरसावां को उड़ीसा में विलय के बजाय यथावत रखा जाए। झगड़ा इसी बात को लेकर था। ऐसे में पूरे कोल्हान इलाके से बूढ़े-बुढिय़ा, जवान, बच्चे, सभी एक जनवरी को हाट-बाजार करने और जयपाल सिंह मुंडा को सुनने-देखने भी गए थे। जयपाल सिंह अलग झारखंड राज्य का नारा लगा रहे थे। जयपाल सिंह मुंडा के आने के पहले ही भारी भीड़ जमा हो गई थी। इसी दौरान गोली चलाया गया। वहीं रवि मुंडा ने उपस्थित सभी लोगों से आग्रह एवं निवेदन किया कि आदिवासी समाज अपने इतिहास को जानने की कोशिश करें। साथ ही नया साल के त्योहार को त्याग करते हुए अपने वीर शहीदों को नमन व याद करें। अध्यक्षता कर रहे रेंगो बिरूवा ने कहा कि नया साल का उत्सव पूरा देश मनाता है लेकिन आदिवासियों का नया वर्ष सरहुल के पर्व में आता है, जिस समय साल वृक्ष के शाखा में फूल आते हैं। इस दौरान मास्टर मुंडा, सोनाराम गोडसोरा, उर्मिला लोहार, किरण बिरूली, कालीचरण किस्कू, विजय मरांडी, डॉ राजेंद्र, दीपक सवैंया, शुक्रमुनी मुंडा, घनश्याम बिरूली, तुराम बिरूली, बसमती बिरूली, हीरालाल दोंगो, जुश्फ कश्यप, रानी गोडसोरा, नानिका पूर्ति, शंभू सोय, मनीषा तिर्की, प्रदीप कालुन्डिया, संतोषी कालुन्डिया, साहिल सुंडी आदि सहित काफी संख्या में आदिवासी समाज के महिलाएं एवं पुरुष उपस्थित थे।




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