
(जगदलपुर) शांतिपूर्ण दशहरा पर्व के लिए पूरी हुई सदियों पुरानी परंपरा -1जोगी बिठाई रस्म
- 23-Sep-25 02:29 AM
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0 9 दिन की कठोर तपस्या पर बैठे बड़े आमाबाल के रधुनाथ।
केशव सल्होत्रा
जगदलपुर 23 सितबंर (आरएनएस)। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत के साथ, एक सदियों पुरानी और अनूठी परंपरा 'जोगी बिठाईÓ भी सम्पन्न हो गई है। यहां बड़े आमाबाल के रघुनाथ नाग जोगी बनकर नौ दिन की कठोर तपस्या पर बैठे। मंगलवार को सिरहासार में आयोजित जोगी बिठाई रस्म के अवसर पर विधायक किरण देव, बस्तर दशहरा समिति के उपाध्यक्ष बलराम मांझी, नगर निगम अध्यक्ष खेमसिंह देवांगन सहित मांझी, चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन तथा जनप्रतिनिधि व बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। यह रस्म बस्तर दशहरा को बिना किसी बाधा के शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के उद्देश्य से निभाई जाती है। इस वर्ष भी, हल्बा समुदाय का एक युवक नौ दिनों के उपवास और योग की मुद्रा में जगदलपुर के सिरहासार भवन में बैठ गया है।क्या है 'जोगी बिठाईÓ की रस्म?यह रस्म हल्बा जाति के एक पुरुष द्वारा लगभग 600 सालों से निभाई जा रही है। जोगी पितृमोक्ष अमावस्या के दिन सिरहासार भवन पहुंचता है और दशहरा की शुरुआत से लेकर नौ दिनों तक उपवास पर रहता है। इस दौरान वह केवल फल और दूध का सेवन करता है।?इस तपस्या का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बस्तर दशहरा का भव्य आयोजन बिना किसी विघ्न के सफलतापूर्वक पूरा हो।?जोगी के रूप में बैठने वाले व्यक्ति को कई विशेष प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। सबसे पहले, वह अपने पितरों का श्राद्ध करता है। इसके बाद, उसे नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और मावली माता मंदिर ले जाया जाता है, जहां तलवार की पूजा होती है। पूजा के बाद, जोगी तलवार लेकर सिरहासार भवन लौटता है और एक कुंड में योगासन की मुद्रा में बैठ जाता है।?इस दौरान उसे बुरी नजर से बचाने के लिए चारों ओर कपड़े का पर्दा लगाया जाता है। नौ दिनों तक जोगी इसी अवस्था में रहकर बस्तर की शांति के लिए तपस्या करता है।?इस रस्म से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि बहुत साल पहले, दशहरा के दौरान एक हल्बा युवक ने निर्जल उपवास रखकर तपस्या शुरू कर दी थी। जब तत्कालीन महाराजा को इस बात का पता चला, तो वह स्वयं युवक से मिलने गए। युवक ने महाराजा को बताया कि उसने यह तपस्या दशहरा को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए की है। इससे प्रसन्न होकर, महाराजा ने उसके लिए सिरहासार भवन का निर्माण करवाया और इस परंपरा को हमेशा के लिए जारी रखने का आदेश दिया।?आज भी यह रस्म उसी सम्मान और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।
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