14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशेष: राजभाषा हिंदी और हिंदी दिवस

  • 14-Sep-25 12:00 AM

डॉ अर्चना त्रिपाठीराजभाषा, राज्य भाषा और राष्ट्रभाषा जैसे सूक्ष्म और सामान्य दृष्टि सतह पर एक सा अर्थ देते हैं परंतु भाषा की तात्विक अर्थ दृष्टि में और प्रयोग के धरातल पर इन शब्दों की अर्थ व्यंजकता भिन्न है। राज कार्य राजकीय कार्य चलाने की भाषा राजभाषा कहलाती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी देश का प्रशासन चलाने के लिए राजभाषा के रूप में किसी महत्वपूर्ण भाषा को मान्यता दी जाती है हम दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि प्रत्येक राष्ट्र अपने संविधान निर्माण के समय प्रशासनिक कार्यों को चलाने के लिए किसी एक भाषा को राजकीय स्वीकृति प्रदान करता है। केंद्रीय और उसकी प्रादेशिक सरकार द्वारा पत्र व्यवहार अथवा सरकारी कामकाज की विधि पद्धति राजभाषा के माध्यम से संपन्न होती है।राजभाषा हिंदी को संविधान की धारा 343 के अनुसार (1) संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के राजकीय परियोजनाओं के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा। संविधान लागू होने से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए अभी तक उनका प्रयोग होता आ रहा है, इसी धारा में यह भी व्यवस्था कर दी गई कि उक्त समय अवधि में अपने आदेश द्वारा राष्ट्रपति संघ के राजकीय प्रयोजन के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी का प्रयोग भी कर सकेंगे।14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाना या मनाया जाना अनुचित नहीं है, अनुचित है उसे कर्मकांड और उत्सव धर्मी का स्वरूप प्रदान करना। प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी की प्रतिष्ठा में वृद्धि न करके हम उसका विसर्जन सा कर देते हैं। उसकी प्रतिभा को हम सही रूप नहीं दे पा रहे हैं। उसका समृद्ध साहित्य और लोक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी उपयोगिता उसकी मान्यता का आधार बनती है। हिंदी और भारतीय भाषाएं दरिद्रों की भाषा नहीं है, अपितु वह आध्यात्म और प्रौद्योगिकी से लेकर विज्ञान का सुषमा तम जानकारी करने वाले शब्दों का भंडार है। संस्कृत उसकी मां है। एक शब्द के अनेक और अनगिनत शब्दों का निर्माण करने की धातु संपदा उसके पास है। भाषा को संवारने और उसे सुसंस्कृत करने वाला उसका व्याकरण प्रकृति और संस्कृति के बीच का सेतु है। उसमें तर्क है, ल य है, और उसमें अनुरोध भी है, वैराग्य भी , उसमें संघर्ष का निषेध और समरसता की भावना है, भारतीय भाषाओं के साथ उसका सखी भाव सर्व व्याप्त है। उसको मार रहे हैं वह जो उसके नाम पर रोजी-रोटी कमाते खाते हैं। उसकी अब मानना कर रहे हैं वे जो भाषा का व्यापार करते हैं। उसका विकास नहीं होने दे रहे हैं वे जिन्होंने उसका औद्योगिकरण कर रखा है। उसके प्रचलन में बाधक हैं वह जिन्हें सत्ता और वोट की राजनीति के अतिरिक्त और कुछ नहीं समझते। जिन्हें यह डर है कि यह देश जब अपनी भाषा में बोलने लगेगा तो वह कहीं के नहीं रहेंगे। जरूर इस बात की है कि देशवासी सत्ता के इन दलालों से बचाना सीखें। इनका इरादा समझे और अपने-अपने इरादे पर दृढ़ता से कार्य करते रहें। अपने देश की भाषा में उनके राजकाज की भाषा से जवाब तलब करें और इसका मानसिक दबाव से मुक्ति हो की भाषा में क्या रखा है? भाषा कोई भी हो काम चलना चाहिए। भाषा कामकाज चलाने के लिए ही तो होती है।कुछ चिंतनशील लोग हिंदी दिवस को जायज तो कुछ बिना मतलब ठहराएंगे। उनके मन में हिंदी के प्रति जो उदार है, जो चिंता है वह अखबारों में अक्षर से उभर आती है। लेकिन जब तक आप उनकी चिंता से रूबरू होते हैं तब तक 15 सितंबर हो गया होता है और यह चिंतितमनीषी हिंदी दिवस के अवसर पर जो संकल्पना लिए हुए रहते हैं उसे वह विसर्जित कर अपना थकान मिटा रहे होते हैं अथवा अपने बच्चों के लिए कॉन्वेंट स्कूल में दाखिले के लिए निवेदन कर रहे होते हैं । जब तक सियासत की बाजीगरी में मशगूल लोग भी हिंदी को उसका सही स्थान बताने व दिलाने की बात करते हैं पर उनके बच्चों के लिए अंग्रेजी ही विकास की खिड़की है इस अवसर पर सत्ता में बैठे लोगों की बात समझ में आती है कि वह हिंदी के पत्रकार भले ही हो पर हिंदी के साधन यह बताएंगे कि आखिर आजादी के बाद हिंदी सत्ता की कृपा की मोहताज कैसे हो गई? हिंदी एक सोच है जो भारतीयता के रूप में प्रकट होती है।इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमें हिंदी दिवस को हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा, हिंदी मां और हिंदी वर्ष फिर कभी हिंदी सती के रूप में जो कुछ कर रहे हैं अथवा करेंगे उसकी सार्थकता पर पश्चिम हिंदी जगत से ही लगाई जा रहे हैं। हमें पीडि़त करने वाली बात तो यह है कि इसी के बहाने एक हिंदी सेवक दूसरे को धकियाते, धकेलते हुए आगे बढ़ते मिलते हैं। कुछ लोग किसी-किसी को पूछते भी मिलेंगे वह भी निराले ढंग से। किसी की पूजा उसका गुणगान करने से नहीं बल्कि किसी अन्य को गरियाने से ही रही है, मात्र एक दिन मान लेने से हमारी पूरी संकल्पना नहीं होती। हमें इसे मानने की राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में हिंदी के महत्व को फिर से स्थापित करना पड़ेगा और मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने में मदद करें ऐसा कुछ उपाय हमें सोचना चाहिए। ना कि एक दिन बल्कि पूरे वर्ष भर उल्लासित रहना चाहिए, हमें गर्व होना चाहिए अपनी मातृभाषा पर।लेखिका प्रवक्ता: हिंदी विभाग हैं




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