एस. सुनील
जी राम जी को विकसित भारत के लिए विकसित ग्रामीण व्यवस्था तैयार करने के स्पष्ट उद्देश्य से लाया गया है। विपक्षी पार्टियों और आलोचकों को इस पर अमल का इंतजार करना चाहिए तब उनको वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगेगा। जहां तक तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल का आरोप है तो यह समझने की जरुरत है कि अगर आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाए तो पहले की तरह योजनाओं में अनियमितता बनी रहेगी।
संसद का शीतकालीन सत्र ऐतिहासिक रहा। वंदे मातरम् और चुनाव सुधार पर दो लंबी और सार्थक चर्चा के साथ आठ विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हुए। दो अन्य विधेयक संसदीय समितियों को भेजे गए। राज्यसभा में उत्पादकता 121 प्रतिशत और लोकसभा में 111 प्रतिशत रही। दुर्भाग्य से लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष संसद की अहम कार्यवाही के समय नदारद रहे। वे जर्मनी में बीएमडब्लु की फैक्टरी घूम रहे थे और साढ़े चार सौ सीसी की बाइक के साथ तस्वीरें खिंचवा रहे थे। उनकी अनुपस्थिति में देश के लोगों ने प्रियंका गांधी वाड्रा की राजनीतिक समझ का परिचय प्राप्त किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला के साथ औपचारिक चाय पार्टी में उनकी उपस्थिति ने भारत की गरिमामय संसदीय परंपरा की तस्वीर प्रस्तुत की।
बहरहाल, 2025 का शीतकालीन सत्र विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी वीबी-जी राम जी विधेयक के लिए याद किया जाएगा। यह भारत के गांवों की तस्वीर बदलने वाला विधेयक है। विपक्षी पार्टियों ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस विधेयक के नाम का मुद्दा बनाया और महात्मा गांधी बनाम रामजी का विवाद खड़ा किया। महात्मा गांधी की समाधि पर भी राम ही लिखा हुआ है और यह विधेयक महात्मा गांधी के रामराज्य और ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने वाला है। वे अंतिम व्यक्ति के सशक्तिकरण के जिस सिद्धांत के पक्षधर थे वह इस विधेयक के कानून बनने से पूरा होगा। यह विधेयक राज्यों को भी सशक्त बनाएगा, उन्हें अपनी योजनाएं लागू करने में मदद करेगा और गांवों में एक मजबूत व टिकाऊ बुनियादी ढांचा तैयार करेगा, जिससे आने वाले वर्षों में गांवों की तस्वीर बदलेगी।
इस विधेयक को मंगलवार, 16 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया और विपक्ष के अनुरोध पर अगले दिन इस पर चर्चा रखी गई। वह चर्चा 17 दिसंबर की रात दो बजे तक चलती रही। विपक्ष के 90 से ज्यादा सांसदों ने अपनी बात रखी और अगले दिन 18 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस चर्चा का जवाब दिया। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को बिंदुवार तरीके से खारिज किया। उसके बाद बिल को ध्वनिमत से मंजूरी दी गई। उसके तत्काल बाद इसे राज्यसभा में पेश किया गया और वहां भी 18 दिसंबर की आधी रात तक चर्चा के बाद इसे पास किया गया है। विपक्ष को लग रहा था कि यह विधेयक अचानक पेश कर दिया गया और इसके पीछे कोई तैयारी नहीं है। परंतु जब चर्चा शुरू हुई और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की कमियां और उसमें हो रही गड़बडिय़ों की परतें खुलने लगीं और इस विधेयक के प्रावधान सामने आने लगे तब समझ में आय़ा कि सरकार ने इसके लिए कितनी तैयारी की थी।
संसद में हुई चर्चा से पता चला कि पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में मनरेगा के क्रियान्वयन में गड़बडिय़ों का पता चला था। उसके बाद देश भर में इसका अध्ययन किया गया। 23 राज्यों से मिली रिपोर्ट में इस कानून में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का पता चला और साथ ही यह भी पता चला कि यह कानून अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुका है। इसके जरिए अब कोई नया लक्ष्य नहीं हासिल किया जा सकता है। जबकि भारत को 2047 तक विकसित बनाने के लिए गांवों में बुनयादी ढांचे के विकास के साथ साथ ग्रामीण आबादी को आत्मनिर्भर बनाने की अत्यंत आवश्यकता है। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि भारत के गांव अब वैसे नहीं हैं, जैसे 2005 में थे। उस समय की जरुरतों के मुताबिक इस कानून को बनाया गया था। लेकिन अब गांव बदल गए हैं। वहां बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़क, बिजली और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो गई है। गांवों में भी वैसी गरीबी नहीं है, जैसी 2005 में थी। देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की आबादी घट कर पांच प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। पिछले 11 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने गरीबी उन्मूलन के अभियान को अत्यंत प्रभावशाली तरीके से क्रियान्वित किया है। तभी एब्सोल्यूट पॉवर्टी लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गई है। इसलिए गांवों में रोजगार और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दूसरी पीढ़ी की योजना की आवश्यकता थी और वह आवश्यकता इस नए कानून से पूरी होगी।
इस विधेयक की तीन बुनियादी कारणों से आलोचना की जा रही है। विपक्ष का आरोप है कि इससे रोजगार का अधिकार खत्म हो जाएगा और दूसरे कानूनी रूप से रोजगार प्राप्त करने की गारंटी खत्म हो जाएगी। तीसरी बात यह है कि इसे मांग आधारित योजना की बजाय आवंटन आधारित यानी सप्लाई आधारित योजना बनाया जा रहा है। ये तीनों बिंदु पूरी तरह से गलत हैं। सबसे पहले तो सरकार ने मनरेगा के तहत मिलने वाले एक सौ दिन की रोजगार गारंटी को बढ़ा कर 125 दिन कर दिया है। यानी अब अगर ग्रामीण इलाके का कोई व्यक्ति या परिवार चाहे तो 125 दिन रोजगार उसे मिलेगा। दूसरी बात यह है कि पहले की तरह अब भी यह कानूनी बाध्यता है कि रोजगार मांगने के 15 दिन के भीतर उसे रोजगार उपलब्ध कराया जाए अन्यथा बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। सवाल है कि जब रोजगार के दिन बढ़ा दिए गए और 15 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध कराने की वैधानिक व्यवस्था को बनाए रखा गया तो अधिकार या गारंटी कैसे खत्म हो गई?
जहां तक आवंटन आधारित योजना का रूप देने की बात है तो इस योजना के तहत केंद्र सरकार पर्वतीय राज्यों जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के सिक्किम सहित अन्य राज्यों के लिए इस योजना में 90 प्रतिशत फंड देगी। इसी तरह जिन केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं है वहां सौ फीसदी फंड केंद्र सरकार देगी। बाकी राज्यों में 60 और 40 फीसदी की हिस्सेदारी होगी। विपक्षी पार्टियों को अंदाजा नहीं है कि केंद्र सरकार की ओर से दिया जाने वाला 60 प्रतिशत फंड कितना होगा लेकिन उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया है। हो सकता है कि वह 60 फीसदी फंड ही अभी दिए जाने वाले सौ प्रतिशत फंड से ज्यादा हो। अभी 60 हजार करोड़ रुपए का बजट आवंटन होता है और संशोधित खर्च 86 हजार करोड़ तक हुआ था। हो सकता है कि सरकार इसमें कटौती नहीं करे या इससे ज्यादा फंड दे। लेकिन उससे पहले ही विपक्षी पार्टियों ने इसे विरोध का आधार बना दिया।
असल में विपक्ष और तमाम आलोचक इस बात को समझ ही नहीं रहे हैं कि बदलती हुई जरुरत के हिसाब से योजनाओं को भी बदलना होता है। 20 साल पहले कोई योजना शुरू हो गई तो जरूरी नहीं है कि वह उसी रूप में आज भी प्रासंगिक हो। एक समय था, जब तालाब खोदना या भरने का काम इस योजना के तहत किया गया। यह भी सही है कि कोरोना महामारी के समय यह योजना करोड़ों लोगों के जीवन का आधार बनी। लेकिन ऐसा नहीं है कि नए रूप में यह करोड़ों लोगों के जीवन का आधार नहीं रहेगी। नए रूप में इस योजना से नागरिकों को ज्यादा लाभ मिलेगा और साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित भारत के हिसाब से बुनियादी ढांचा तैयार करने में भी आसानी होगी। इस विधेयक के चार बहुत स्पष्ट लक्ष्य तय किए गए हैं। पहला, जल संरक्षण की व्यवस्था करना। इस योजना के जरिए जल स्त्रोतों को पुनर्जीवन देना और उनको संरक्षित रखना एक लक्ष्य है। दूसरा, ग्रामीण स्तर पर टिकाऊ बुनियादी ढांचा विकसित करना, जिससे भविष्य में लोगों को रोजगार मिलता रहे और उनका जीवन सुगम बने। तीसरा, आजीविका के साधन तैयार करना। इसका भी मकसद है कि ऐसा ढांचा तैयार हो, जिससे लोगों को स्वतंत्र रूप से जीवनयापन के साधन उपलब्ध हों। और चौथा, मौसम की मार से लोगों को बचाने का ढांचा तैयार करना है। इन दिनों मौसम का अतिरेक बहुत आम घटना है। उसे रोकने के उपाय हों और किसी वैसी आपदा की स्थिति में लोगों को बचाने का ढांचा मौजूद हो यह भी इस विधेयक का लक्ष्य है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि विधेयक को व्यापक रूप दिया गया है, इसके व्यापक लक्ष्य तय किए गए हैं और इसे पूरी तरह से विकसित भारत के लिए विकसित ग्रामीण व्यवस्था तैयार करने के स्पष्ट उद्देश्य से लाया गया है। विपक्षी पार्टियों और आलोचकों को इस पर अमल का इंतजार करना चाहिए तब उनको वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगेगा। जहां तक तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल का आरोप है तो यह समझने की जरुरत है कि अगर आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाए तो पहले की तरह योजनाओं में अनियमितता बनी रहेगी। तकनीक जैसे बायोमेट्रिक्स, एआई आधारित व्यवस्था, जियो टैगिंग या डैशबोर्ड की जरुरत है ताकि किसी किस्म की संभावित गड़बड़ी को रोका जा सके।
बहरहाल, संसद के शीतकालीन सत्र की एक ऐतिहासिक उपलब्धि परमाणु ऊर्जा का क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खोलने की भी रही। सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी शांति विधेयक के जरिए सरकार ने परमाणु ऊर्जा का क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है। विकसित भारत बनाने के लिए यह अनिवार्य आवश्यकता है कि भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। उसका एक रास्ता परमाणु ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना है। उसे नए कानून के जरिए हासिल किया जा सकेगा। दोनों अहम विधेयक पारित होने से पहले संसद के शीतकालीन सत्र में वंदे मातरम् के डेढ़ सौ साल पूरे होने के मौके पर लंबी चर्चा हुई। स्वंय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चर्चा की शुरुआत की। इसके अलावा चुनाव सुधारों पर विस्तार से चर्चा हुई, जिस पर गृह मंत्री अमित शाह बोले। इस तरह की चर्चाओं से संसद की सार्थकता बनती है। कुल मिला कर संसद का शीतकालीन सत्र सार्थक चर्चाओं और बेहद आवश्यक विधायी कार्यों को संपन्न करने वाला रहा।
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